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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्णमासी के दिन उपर्युक्त क्रियाओं के साथ 'ॐ ह्रीं इन्द्रध्वजसंज्ञाय नमः-इस मन्त्र का 108 बार जाप करें तथा उपवास करें। प्रतिपदा के दिन पूजनादि क्रिया के अनन्तर घर आकर 4 प्रकार के संघ को चार प्रकार का दान (आहार, औषधि, अभय, ज्ञान) कर पारणा करें। यह तीन, पाँच, सात या आठ वर्ष किया जाता है। पश्चात् उद्यापन किया जाता है। दशलक्षण व्रत- यह व्रत दशलक्षण पर्व पर किया जाता है। दशलक्षण पर्व वर्ष में 3 बार आते हैं-1. भाद्रपद, 2. माघ और 3. चैत्रमास की शुक्लपक्ष पंचमी से चतुर्दशी तक यह व्रत सम्पन्न होता है। दशों दिन त्रिकाल सामायिक, प्रतिक्रमण, वन्दना, अभिषेक, पूजन, स्तवन तथा धर्म-चर्चा आदि कार्यों में पर्व का पूरा समय व्यतीत करना चाहिए। रात्रि के समय जागरण व भजन करना चाहिए। दशों दिन यथाशक्ति-उपवास- बेला, तेला आदि करना चाहिए। यदि इतनी शक्ति न हो, तो एकाशन, अवमोदर्य तथा रसपरित्याग करना चाहिए। कामोत्तेजक, सचिक्कण, मिष्ट, गरिष्ट और स्वादिष्ट भोजन का त्याग करना चाहिए तथा स्वच्छ वस्त्रों का उपयोग करना चाहिए। दसों दिन की दस जाप इस प्रकार हैं1. ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमल-समुद्गताय-उत्तम-क्षमा-धर्माङ्गाय नमः । ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमल-समुद्गताय उत्तम-मॉर्दव-धर्माङ्गाय नमः। ___ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमल-समुद्गताय-उत्तम-आर्जव-धर्माङ्गाय नमः । ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमल-समुद्गताय-उत्तम-शौच-धर्माङ्गाय नमः । ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमल-समुद्गताय-उत्तम-सत्य-धर्माङ्गाय नमः । ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमल-समुद्गताय-उत्तम-संयम-धर्माङ्गाय नमः । ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमल-समुद्गताय-उत्तम-तपो-धर्माङ्गाय नमः। 8. ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमल-समुद्गताय-उत्तम-त्याग-धर्माङ्गाय नमः । 9. ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमल समुद्गताय-उत्तम-आकिञ्चन्य-धर्माङ्गाय नमः। 10. ॐ ह्रीं अर्हन्मुखकमल समुद्गताय-उत्तम-ब्रह्मचर्य-धर्माङ्गाय नमः। इस व्रत का दश वर्ष पालन कर उद्यापन करना चाहिए। यदि उद्यापन की शक्ति न हो, तो बीस वर्ष तक यह व्रत पालन करना चाहिए। रत्नत्रय व्रत-भाद्रपद, माघ और चैत्रमास के शुक्लपक्ष में त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णमासी को यह व्रत किया जाता है। द्वादशी को व्रत का धारण तथा प्रतिपदा को पारणा (व्रतान्त भोजन) की जाती है अर्थात् द्वादशी को श्री जिनेन्द्र का अभिषेक तथा पूजन कर एकाशन (एक बार भोजन) आदि करे और मध्याह्न काल का सामायिक कर उसी समय से स्वाद्य, खाद्य, लेह्य और पेय इन चारों प्रकार के आहार तथा विकथाओं का त्याग करें। त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णमासी को उपवास करें और प्रतिपदा के दिन अभिषेक तथा पूजन कर अतिथि को भोजन कराकर स्वयं भोजन करें। इस दिन भी लं Fi छ । 368 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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