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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समस्त संघ की साक्षी में आहारादि के प्रत्याख्यान (त्याग) का त्याग करने से तो मर जाना अच्छा है। __ व्रत भंग होने पर लिया गया प्रायश्चित्त-भली-भाँति सोच-विचारकर व्रत ग्रहण करना चाहिए तथा उसका प्रयत्नपूर्वक पालन करना चाहिए। अभिमान या प्रमाद से यदि व्रत भंग हो जाये, तो उसका प्रायश्चित्त लेकर उसका सही रूप पालन करना चाहिए। व्रत के भेद-व्रत दो प्रकार का होता है- देशत्याग (आंशिक त्याग) रूप अणुव्रत और सर्वत्याग रूप महाव्रत। गृहस्थों का चारित्र पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार का होता है। व्रतों से पूर्व सम्यक्त्व अनिवार्य- मुनियों के अहिंसादि पाँच महाव्रत और देशविरत (श्रावकों) के पाँच अणुव्रत ये सम्यग्दर्शन (सम्यक् श्रद्धा) के बिना नहीं होते हैं। अत: आचार्यों ने सम्यक्त्व का वर्णन प्रथमतः किया है। व्रत के ग्रहण करने की विधि- आचार्य शिवार्य कृत भगवती आराधना की टीका में कहा गया है कि जिसको जीवों का स्वरूप ज्ञात हुआ है, ऐसे मुनि को नियम से व्रत देना, यह व्रतारोपण नाम का छठा स्थितिकल्प है। जिसने पूर्ण निर्ग्रन्थ अवस्था धारण की है, उद्दिष्ट (मुनि को उद्देश्य करके जो बनाया जाय) आहार और राजपिण्ड (राजा द्वारा दिया गया आहार) का त्याग किया है, जो गुरुभक्त और विनयी है, वह व्रतारोपण के लिए योग्य है। जब गुरु बैठते हैं और आर्यिकाएँ सम्मुख होकर बैठती हैं, ऐसे समय श्रावक और श्राविकाओं को व्रत दिये जाते हैं। व्रत ग्रहण करने वाला मुनि भी गुरु के बायीं तरफ बैठता है, तब गुरु उसे व्रत देते हैं। व्रत के विषय में जानकर श्रद्धा करके पापों से विरक्त होना/विरत होना/अलग होना व्रत है। __व्रतों की संख्या- जैन परम्परा में व्रतों की संख्या कुछ निश्चित नहीं है। आचार्य जिनसेन कृत हरिवंश पुराण तथा विविध विधिविधानों और व्रतविधान संग्रहादि ग्रन्थों में व्रतों की विविध संख्या और नामावली दृष्टिगोचर होती है। हरिवंश पुराण में निम्नलिखित व्रतों का वर्णन हुआ है____ 1. सर्वतोभद्र व्रत, 2. वसन्तभद्र व्रत, 3. महासर्वतोभद्र व्रत 4. त्रिलोकसार व्रत, 5. वज्रमध्य व्रत, 6. मृदंगमध्यव्रत, 7. मुरजमध्य व्रत, 8. एकावली व्रत, 9. द्विकावली व्रत, 10. मुक्तावली व्रत, 11. रत्नावली व्रत, 12. रत्नमुक्तावली व्रत, 13. कनकावली व्रत, 14. सिंह-निष्क्रीडित व्रत 15. मध्यम सिंह-निष्क्रीडित व्रत, 16. उत्कृष्ट सिंहनिष्क्रीड़ित व्रत, 17. नन्दीश्वर व्रत, 18. मेरुपंक्ति व्रत, 19. विमानपंक्ति व्रत, 20. शातकुम्भ व्रत, 21. चान्द्रायण व्रत, 22. सप्त सप्तम व्रत, 23. आचाम्ल वर्द्धमान व्रत, 24. श्रुतव्रत, 25. दर्शनशुद्धिव्रत, 26. तप:शुद्धि व्रत, 27. चारित्र शुद्धि व्रत, 28. सत्य महाव्रत, 29. अचौर्यमहाव्रत, 30. ब्रह्मचर्य महाव्रत, 31. परिग्रह-त्याग महाव्रत, 32. एक-कल्याण व्रत, 33. पंच-कल्याण व्रत, 34. शील-कल्याण व्रत, 35. भावना व्रत, 36. पंचविंशति व्रत : जैनाचार के आधार :: 365 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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