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और मुनि' को जीवन के अन्त में प्रीतिपूर्वक सल्लेखना धारण करने का उपदेश दिया गया है।
सन्दर्भ
1. अभिधान राजेन्द्रकोष, सप्तमभाग, सावद्यशब्द पृ.-779 2. रत्नकरण्ड श्रावकाचार -66 3. तत्त्वार्थसूत्र 7/39 4. निःशल्यो व्रती। त.सू. 7/18 5. तत्त्रिविधं मायानिदानमिथ्यादर्शनभेदात्। त. वा. 7/18/3 6. अगार्यनगारश्च। अणुव्रतोऽगारी। त. सू. 7/19, 20 7. हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम्। त. सू. 7/1 8. व्रतमभिसन्धि कृतो नियमः, इदं कर्तव्यमिदं न कर्तव्यमिति वा सर्वा. सि. 7/1/664 9. देशसर्वतोऽणुमहती। त. सू. 7/2 10. तत्त्वार्थसूत्रवार्तिक 7/1/6 11. प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा। त. सू. 7/13 12. उद्धृत जैन धर्मामृत 430, 33 13. वाडमनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपानभोजनानि पञ्च। त.सू. 7/4 14. मूलाचार-337 15. बन्धबधच्छेदातिभारारोपणान्नपाननिरोधाः । त. सू. 7/25 16. तत्त्वार्थवार्तिक 7/25/1 से 5 तक के वार्तिक 17. सर्वार्थसिद्धि 7/20/358/8 18. कार्तिकेयानुप्रेक्षा। 333/334 19. क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचिभाषणञ्च पञ्च त. स. 7/5 20. चारित्रसार /65/4 21. मिथ्योपदेशरहोभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः ।। त. सू. 7/26 22. द्रष्टव्य-त. वा. 7/26/1 से 5 तक वार्तिक 23. अदत्तादानं स्तेयम्। त. सू. 7/15 24. रत्नकरण्डश्रावकाचार 57 25. सर्वार्थसिद्धि 7/20/358 26. शून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभैक्ष्यशुद्धिसधर्माविसंवादाः पञ्च । त. सू. 7/6 27. स्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मान प्रतिरूपकव्यवहाराः । त. सू.
7/27 28. रत्नकरण्डश्रावकाचार 59 29. स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराङ्गनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणवृष्येष्टर-सस्वशरीरसंस्कारत्यागाः पञ्च ।
तत्त्वार्थसूत्र 717 30. परविवाहकरणेत्वरिकाऽपरिगृहीतागमनानङ्गक्रीड़ाकामतीव्राभिनिवेशा। त. सू. 7/28 31. तत्त्वार्थवार्तिक 7/28/1 से 5 तक के वार्तिक
श्रावकाचार :: 333
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