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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और मुनि' को जीवन के अन्त में प्रीतिपूर्वक सल्लेखना धारण करने का उपदेश दिया गया है। सन्दर्भ 1. अभिधान राजेन्द्रकोष, सप्तमभाग, सावद्यशब्द पृ.-779 2. रत्नकरण्ड श्रावकाचार -66 3. तत्त्वार्थसूत्र 7/39 4. निःशल्यो व्रती। त.सू. 7/18 5. तत्त्रिविधं मायानिदानमिथ्यादर्शनभेदात्। त. वा. 7/18/3 6. अगार्यनगारश्च। अणुव्रतोऽगारी। त. सू. 7/19, 20 7. हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम्। त. सू. 7/1 8. व्रतमभिसन्धि कृतो नियमः, इदं कर्तव्यमिदं न कर्तव्यमिति वा सर्वा. सि. 7/1/664 9. देशसर्वतोऽणुमहती। त. सू. 7/2 10. तत्त्वार्थसूत्रवार्तिक 7/1/6 11. प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा। त. सू. 7/13 12. उद्धृत जैन धर्मामृत 430, 33 13. वाडमनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपानभोजनानि पञ्च। त.सू. 7/4 14. मूलाचार-337 15. बन्धबधच्छेदातिभारारोपणान्नपाननिरोधाः । त. सू. 7/25 16. तत्त्वार्थवार्तिक 7/25/1 से 5 तक के वार्तिक 17. सर्वार्थसिद्धि 7/20/358/8 18. कार्तिकेयानुप्रेक्षा। 333/334 19. क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचिभाषणञ्च पञ्च त. स. 7/5 20. चारित्रसार /65/4 21. मिथ्योपदेशरहोभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः ।। त. सू. 7/26 22. द्रष्टव्य-त. वा. 7/26/1 से 5 तक वार्तिक 23. अदत्तादानं स्तेयम्। त. सू. 7/15 24. रत्नकरण्डश्रावकाचार 57 25. सर्वार्थसिद्धि 7/20/358 26. शून्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभैक्ष्यशुद्धिसधर्माविसंवादाः पञ्च । त. सू. 7/6 27. स्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मान प्रतिरूपकव्यवहाराः । त. सू. 7/27 28. रत्नकरण्डश्रावकाचार 59 29. स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहराङ्गनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणवृष्येष्टर-सस्वशरीरसंस्कारत्यागाः पञ्च । तत्त्वार्थसूत्र 717 30. परविवाहकरणेत्वरिकाऽपरिगृहीतागमनानङ्गक्रीड़ाकामतीव्राभिनिवेशा। त. सू. 7/28 31. तत्त्वार्थवार्तिक 7/28/1 से 5 तक के वार्तिक श्रावकाचार :: 333 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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