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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13. स्वतन्त्र कारण, 14. अवलम्बकारण, 15. अधिपति कारण, 16. अधिकरण कारण, 17. सहभावी कारण, 18. क्रमभावी कारण, 19. कार्यदेशस्थित कारण, 20. अन्यदेशस्थित कारण। इसी प्रकार इनके सम्बन्ध भी सूचित किए गये हैं 1. निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध, 2. आधार-आधेय सम्बन्ध, 3. एक क्षेत्रावगाह सम्बन्ध, 4. विषय-विषयी सम्बन्ध, 5. वाच्य-वाचक सम्बन्ध, 6. ज्ञाप्य-ज्ञापक सम्बन्ध, 7. बहिर्व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध, 8. अन्तर्व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध । हेतु के भी तीन भेद कहे गए हैं 1. कारक हेतु , 2. ज्ञापक हेतु , 3. व्यंजक हेतु । निमित्त अभावात्मक भी हो सकते हैं ऊपर वे कुछ कारण गिनाये गए हैं, जो अपने सद्भाव द्वारा कार्य की निष्पन्नता में सहायक हो सकते हैं। जैन न्याय के अनुसार इन सद्भावात्मक कारणों के अलावा अनेक ऐसे भी कारण हैं, जिनका अभाव कार्य को उत्पन्न करने और बनाए रखने में निमित्त बनता है। ये अभावात्मक कारण हैं किसी भी द्रव्य की, या किसी भी पदार्थ की सुनिश्चित और परिपूर्ण परिभाषा करनी हो तो उसकी वर्तमान पर्याय की व्याख्या करके ही उसका सही परिचय देना सम्भव होता है। उस पदार्थ का यह रूप कब निर्मित हुआ, उसका रूप-रंग कैसा है, उसका रस या स्वाद कैसा है, उसकी गन्ध कैसी है और उसका स्पर्श ठण्डा है या गर्म, रूखा है या चिकना, हल्का है या भारी तथा कोमल है या कठोर, ये कुछ बातें तो उसके परिचय में बतायी जाएँगी। यही तो वस्तु-स्वरूप की परिभाषा होगी, किन्तु वस्तु की समग्र परिभाषा यहाँ समाप्त नहीं होती। सारे विवरण बताने के बाद भी वस्तु के सम्बन्ध में बहुत-कुछ अनकहा रह जाता है, जिस पर विचार किये बिना वस्तु का परिचय पूरा नहीं कहा जा सकता। ___ परिभाषा की पूर्णता के लिए हमें वस्तु की विद्यमान पर्यायों के साथ उसकी वर्तमान में अविद्यमान पर्यायों को भी विचार में लेना पड़ेगा। सद्भाव की चर्चा के साथ अभाव की चर्चा किए बिना वस्तु-व्याख्यान पूरा नहीं होता। जैन आचार्यों ने उन सारे अभावों को मुख्यतः प्राग् अभाव, प्रध्वंस अभाव, अन्योन्य अभाव और अत्यन्त अभाव, इन चार अभावों में वर्गीकृत किया है। आगम में इनका स्वरूप इस प्रकार बताया गया है___ 1. प्राग् अभाव -वर्तमान पर्याय का पूर्व पर्याय में जो अभाव है, वह प्रागभाव है। जैसे - दही का दूध में अभाव या छाछ का दही में अभाव। 2. प्रध्वंस अभाव-वर्तमान पर्याय का आगामी पर्याय में जो अभाव है, वह प्रध्वंसाभाव है। जैसे – दूध का दही में अभाव या दही का छाछ में अभाव। 3. अन्योन्य अभाव -द्रव्य की एक वर्तमान पर्याय में उसी द्रव्य की विगत और जीव और कर्म सम्बन्ध :: 275 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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