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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यवहार में एक ही वस्तु में नाम, स्थापना आदि चारों व्यवहार बन जाते हैं। नामनिक्षेप के जाति, द्रव्य, गुण, क्रिया आदि, स्थापना-निक्षेप के असद्भाव, अक्ष, वराटक आदि, द्रव्य-निक्षेप के आगम, नो-आगम आदि भेद-प्रभेद किये गये हैं। प्रमाण, नय और निक्षेप में अन्तर जहाँ जीवादितत्त्वों के अधिगम के लिए प्रमाण और नय आवश्यक हैं, वहाँ जीवादितत्त्वों के संव्यवहार के लिए निक्षेप प्रक्रिया का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। वस्तुतः निक्षेप भाषा और भाव की संगति है। सम्यग्ज्ञान प्रमाण है, ज्ञाता के हृदय का अभिप्राय नय है एवं निक्षेप उपाय स्वरूप है। नयचक्रवृत्ति में लिखा है कि प्रमाण और नय से निर्णीत पदार्थ निक्षेप का विषय होता है। शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, उसमें प्रयोजक को कौन सा अर्थ अभीष्ट है, यह निर्णय निक्षेप-प्रक्रिया द्वारा होता है। अखण्ड ज्ञेय पदार्थ के जो भेद किये जाते हैं, वह निक्षेप है तथा उस भेद को जानने वाला ज्ञान नय कहलाता है। _आचार्य पूज्यपाद ने आगमग्रन्थों की तरह समग्र-विषय-वस्तु को निक्षेप-विधि में बाँधकर नय-दृष्टि से विचार किया है। परम्परा का निर्वाह करते हुए उन्होंने भावनिक्षेप पर्यायार्थिक नय का विषय एवं शेष तीन नाम, स्थापना और द्रव्य निक्षेप द्रव्यार्थिक नय के विषय बताये हैं। 'तत्त्वार्थवार्तिक' में यह प्रश्न उठाया गया है कि जब नाम, स्थापना और द्रव्य, द्रव्यार्थिक नय के विषय हैं तथा भाव पर्यायार्थिक नय का, तब स्वतन्त्र रूप से निक्षेपों का कथन नहीं किया जाना चाहिए, इसका समाधान यह दिया गया है कि नयों का कथन विषय की दृष्टि से है तथा निक्षेपों का कथन विषयी की दृष्टि से किया गया है। जो मन्दबुद्धि हैं, उनके लिए भी नय और निक्षेप का पृथक्पृथक् विवेचन आवश्यक माना गया है। सन्दर्भ-ग्रन्थ 1. आप्तमीमांसा, समन्तभद्र, वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, दिल्ली 2. सन्मतिप्रकरण, सिद्धसेन, सं. सुखलाल संघवी, बे. दोषी ज्ञानोदय ट्रस्ट, अहमदाबाद 3. आगम युग का जैनदर्शन, पं. दलसुख मालवणिया, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा 4. जैनदर्शन, पं. महेन्द्रकुमार जैन, गणेश वर्णी जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी 5. जैनन्याय, पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली 6. ऋग्वेद सायणभाष्य सहित, वैदिक संशोधन मंडल, तिलक, म. विद्यापीठ पूना 7. शतपथ ब्राह्मण 8. ऐतरेय ब्राह्मण 9. चरकसंहिता, सूत्रस्थान 238 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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