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196 :: जैनधर्म परिचय
आवश्यक है। स्याद्वाद और अनेकान्तवाद को समझने के लिए सप्तनय और चार निक्षेप का ज्ञान भी आवश्यक है।
अनेकान्तवाद जैनधर्म का प्रमुख सिद्धान्त है । जिस प्रकार अहिंसा का सूक्ष्म चिन्तन जैन साहित्य में प्राप्त होता है। उसी प्रकार अनेकान्तवाद का गम्भीर चिन्तन अनेक आचार्यों ने किया है और विपुल साहित्य का सृजन किया है। वास्तव में देखा जाय तो अनेकान्तवाद का आधार सत्य है और सत्य की खोज सभी आत्मार्थियों के लिए आवश्यक है । अनेकान्तवाद के द्वारा हमें सत्य की प्राप्ति हो सकती है । इसीलिए जैनदर्शन में अनेकान्तवाद/स्याद्वाद का विशेष विवरण प्राप्त होता है ।
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