SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir की समाप्ति पर पूजा कराने वाला अपनी कन्या दे दे, तो वह दैव विवाह है। यही दोनों उत्तम प्रकार के विवाह माने गये हैं, क्योंकि इनमें वर से शादी के बदले में कुछ लिया नहीं जाता। कन्या के वस्त्र या कोई ऐसी ही मामूली दामों की वस्तु वर से लेकर धर्मानुकूल विवाह कर देना आर्ष विवाह है। विवाह की विधि में सप्तपदी का भी उल्लेख गया है। विवाह सम्पन्न होने के उपरान्त तीर्थ-क्षेत्र की यात्रा करने का भी उल्लेख किया गया है। ये सारी क्रियाएँ संस्कृति और संस्कार को संरक्षित रखने के उद्देश्य से बतायी गयी हैं। 3. सम्पत्ति- जैन लॉ के अनुसार सम्पत्ति के स्थावर और जंगम दो भेद हैं। जो पदार्थ अपनी जगह पर स्थिर है और हलचल नहीं कर सकता, वह स्थावर है, जैसे गृह, बाग इत्यादि, और जो पदार्थ एक-स्थान से दूसरे स्थान में सुगमतापूर्वक आ जा सकता है, वह जंगम है। दोनों प्रकार की सम्पत्ति विभाजित हो सकती है, परन्तु ऐसी सलाह दी गई है कि स्थावर द्रव्य अविभाजित रक्खे जाएँ, क्योंकि इसके कारण प्रतिष्ठा और स्वामित्व बने रहते हैं। ___दाय भाग की अपेक्षा सप्रतिबन्ध और अप्रतिबन्ध दो प्रकार की सम्पत्ति मानी गई है। पहले प्रकार की सम्पत्ति वह है, जो स्वामी के मरण पश्चात् उसके बेटे, पोतों को सन्तान की सीधी रेखा में पहुँचती है। दूसरी वह है, जो सीधी रेखा में न पहुँचें, वरन् चाचा, ताऊ इत्यादि कुटुम्ब-सम्बन्धियों से मिले। निम्न प्रकार की सम्पत्ति विभाजन योग्य नहीं है1. जिसे पिता ने अपने निजी मुख्य गुणों या पराक्रम द्वारा प्राप्त किया हो, जैसे राज्य। 2. पैतृक सम्पत्ति की सहायता बिना जो द्रव्य किसी ने विद्या आदि गुणों द्वारा उपार्जन किया हो, जैसे विद्या-ज्ञान द्वारा आय। 3. जो सम्पत्ति किसी ने अपने मित्रों अथवा अपनी स्त्री के बन्धुजनों से प्राप्त की हो। ___4. जो खानों में गड़ी हुई उपलब्ध हो जावें अर्थात् दफीना आदि। 5. जो युद्ध अथवा सेवा-कार्य से प्राप्त हुई हो। 6. जो साधारण आभूषणादिक पिता ने अपनी जीवनावस्था में अपने पुत्रों व उनकी स्त्रियों को स्वयं दे दिया हो। 7. स्त्री-धन। 8. पिता के समय डूबी हुई सम्पत्ति, जिसको किसी भाई ने अविभाजित सम्पत्ति की सहायता बिना प्राप्त की हो, परन्तु स्थावर-सम्पत्ति की दशा में वह पुरुष जो उसे प्राप्त करे, केवल अपने सामान्य भाग से चतुर्थ अंश अधिक पाएगा। जैन कानून के मुताबिक सम्पत्ति को विभाजन-योग्य भी माना गया है और पारिवारिक सुख व शान्ति के लिए विभाजन को औचित्यपूर्ण कहा गया है। पति की मृत्यु के पश्चात् कानून :: 147 For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy