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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डाला। उसी प्रभाव ने एक रायबहादुर सा. का हृदय पलट दिया। उन रायबहादुर सा. ने वह चादर 3001 रु. में लेकर फिर वर्णी जी को प्रदान कर दी। यह असर वर्णी जी की राष्ट्रीयता एवं शुभ प्रेरणा का उज्ज्वल प्रतीक है जिसने न केवल साधारण व्यक्तियों का बल्कि सरकार-परस्त समझे जाने वाले रायबहादुरों तक का हृदय ऐसे व्यक्तियों की मदद करने को प्रेरित किया जिन्होंने इस ब्रिटिश हुकूमत का नाश करने की कसम खाई थी; जिनका एकमात्र ध्येय था-'आजादी, अमन, तरक्की' और जो कि ब्रिटिश-फौजों से हथियार लेकर लड़े थे। वास्तव में, यह वर्णी जी ही जैसे त्यागी व्यक्ति का प्रभाव था जिसने उन्हें 'सरकार के दुश्मनों' की सहायता करने की प्रेरणा दी। यह एक घटना है जो कि इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरों से लिखी रहेगी एवं बतलाएगी कि 'जैनधर्म राष्ट्रीयता सिखाता है और जैन धर्म राष्ट्रीय धर्म है। यदि जैन धर्म राष्ट्रीय धर्म न होता तो जैन-धर्म का मूल सिद्धान्त अहिंसा आज राष्ट्रीय-आन्दोलन का आधार न होता। यदि जैन धर्म देश-सेवा और देश-सेवकों की सेवा करना न सिखाता तो क्या जरूरत थी कि वर्णी जी सरीखे पहुँचे हुए त्यागी उन व्यक्तियों की सहायता करते जिन्होंने हिंसा द्वारा ब्रिटिश सरकार का विनाश करने की ठानी थी? निश्चय ही उपर्युक्त घटना का उपस्थित जनता पर भी यह प्रभाव पड़ा और सबने अनुभव किया कि जैनों के त्यागी भी धार्मिक दायित्व की तरह अपने राष्ट्रीय दायित्व के प्रति उदासीन नहीं हैं। उनके 'सत्वेषु मैत्री' के सिद्धान्त में राष्ट्रीय उत्थान और जनकल्याण भी गर्भित है। उनमें समाज और धर्म के ही नहीं, राष्ट्र के नेता बनने की भी क्षमता है। यही बात पं. द्वारका प्रसाद जी मिश्र ने जो कि उस दिन उस सभा के सभापति थे, अपने भाषण में कही थी-'वर्णी जी ने आज आजाद हिन्द फौजियों के प्रति जो सहानुभूति दिखाई है, वह कम से कम जबलपुर नगर के इतिहास में अभूतपूर्व है। जबलपुर में किसी भी त्यागी ने ऐसा अपूर्व त्याग और राष्ट्रीयता दिखलाई हो, ऐसा मैं नहीं जानता। मैं तो केवल इतना ही कह सकता हूँ कि वर्णी जी भले ही आज तक जैन समाज के नेता रहे हों, लेकिन आज वे सबके नेता हैं।' इसी अवसर पर राष्ट्रीय-कवि नरसिंह दास जी ने कहा था-'आज मुझे आनन्द आ रहा है जैसे कि मैं कांग्रेस मंच से बोल रहा हूँ। मैं उन वर्णी जी को नमन करता हूँ कि जिन्होंने अपने त्याग-कार्य से एक राय बहादुर का हृदय बदल दिया।' ___वर्णी जी' का जन्म 1874 ई. में हसेरा (वर्तमान-ललितपुर जिला) उ.प्र. में एक वैष्णव परिवार में हुआ। घर के पास स्थित जैन मन्दिर के चबूतरे पर पढ़ी जाने वाली जैन रामायण (पद्मपुराण) को सुनकर वे वैष्णव से जैन बने और गहन अध्ययन की लालसा में बनारस, जयपुर, कलकत्ता, सागर आदि दशाधिक स्थानों पर अध्ययन किया। 132 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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