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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वतन्त्रता आन्दोलन में जैनों का योगदान For Private And Personal Use Only डॉ. कपूरचन्द्र जैन श्री - समृद्धि सम्पन्न हमारे भारत देश पर अनेक वर्षों तक वैदेशिकों ने शासन किया। 'स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है', 'उसे जो छीनना चाहे, उसका पूरी शक्ति लगाकर प्रतिरोध करना ही राष्ट्रीयता है' जैसी भावनाओं से प्रेरित होकर भारतीय जनसमूह स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ता रहा। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का सुगठित प्रारम्भ 1857 ई. की जनक्रान्ति से माना जाता है । 1857 से 1947 ई. के मध्य के 90 वर्षों में न जाने कितने शहीदों ने अपनी शहादत देकर आजादी के वृक्ष को सींचा, न जाने कितने क्रान्तिकारियों ने अपने रक्त से क्रान्तिज्वाला को प्रज्वलित रखा और न जाने कितने स्वातन्त्र्य-प्रेमियों ने जेलों की सीखचों में बन्द रहकर दारुण यातनाएँ सहीं । ऐसे व्यक्तियों के अवदान को भी कम करके नहीं आँका जाना चाहिए जिन्होंने जेल से बाहर रहकर भी स्वतन्त्रता के वृक्ष की जड़ों को मजबूती प्रदान की । आजादी के आन्दोलन में भाग लेने वाले प्रत्येक देशप्रेमी की अपनी अलग कहानी है, अलग गाथा है। पुरानी स्मृतियाँ हैं, दुःखद अनुभव हैं। परिवार की बर्बादी है और शरीर पर आजादी की इबारतें हैं । किन्हीं के चेहरे पर किन्हीं की पीठ पर, किन्हीं के पेट पर तो किन्हीं के पैरों पर इन इबारतों के निशान हैं। कोई परिवार से छूटा तो कोई शिक्षा से । कितने ही देशप्रेमी कितने ही दिन भूखे पेट रहे, जेल में कंकर - पत्थर मिली रोटियाँ खायीं वह भी अशुद्ध । किसी ने खायीं तो बीमार पड़ गया, कोई बिना खाये ही दो - दो दिन भूखा रहा। किसी ने प्रतिवाद किया तो कोड़े खाये, किसी को गुनहखाने में डाल दिया गया। आजादी के आन्दोलन में न जाति-पाँति का भेद था न छोटे बड़े का । न गरीबअमीर की भावना थी न ऊँच-नीच का भाव था। सभी का एक ही लक्ष्य था - 'हमें देश को आजाद कराना है, हमें आजादी चाहिए, मर जायेंगे, मिट जायेंगे पर आजादी लेकर ही रहेंगे।' फाँसी के फन्दे और गोलियों की बौछार उन्हें भयभीत नहीं कर सकी, जेल की दीवारें उन्हें रोक नहीं सकीं, जंजीरें बाँध नहीं सकीं, डंडे कुचल नहीं सके और परिवार की बर्बादी उन्हें अपने गन्तव्य से विचलित नहीं कर सकी । स्वतन्त्रता संग्राम में जैनधर्मावलम्बियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था । अनेक 116 :: जैनधर्म परिचय
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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