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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आसपास कई शिलालेख उत्कीर्ण हैं। माउंट आबू ___ आबू पर्वत (दिलवाड़ा, राजस्थान) पर विश्वविख्यात अनेक जैन मन्दिर हैं। सभी के सभी शिल्पकला के अद्भुत नमूने हैं। ये सब सफेद संगमरमर से बने हुए हैं। इनके स्तम्भों, तोरणों और छतों की सूक्ष्म कला दर्शनीय है। इन अद्भुत कला के निर्माता राजमन्त्री विमलशाह (बारहवीं शती) और वास्तुकार तेजपाल रहे हैं। एक दिगम्बर मन्दिर को छोड़कर बाकी सभी श्वेताम्बर मन्दिरों का समूह है। सोनगढ़ ___ सोनगढ़ गुजरात प्रदेश के भावनगर जिले में स्थित है। वैसे यह कोई तीर्थस्थान नहीं है, लेकिन सन्त कानजीस्वामी के कारण इसका महत्त्व किसी भी तीर्थ से कम नहीं है। वर्तमान में यहाँ सीमन्धरस्वामी दिगम्बर जैन मन्दिर, मानस्तम्भ, समवसरण मन्दिर, परमागम मन्दिर, नन्दीश्वर मन्दिर, कुन्दकुन्द प्रवचनमंडप, स्वाध्याय मन्दिर आदि अनेक आयतनों का निर्माण हो चुका है। गुजरात की तरह महाराष्ट्र में भी कुछेक निर्माणभूमियों के अतिरिक्त अनेक गुहा मन्दिर हैं। गजपन्था निर्वाणभूमि है। यहाँ से सात बलभद्र और आठ कोटि मुनि यादव मुक्त हुए। पुरातत्त्व की दृष्टि से इसका सर्वाधिक महत्त्व है। एक अन्य निर्वाणस्थली हैमाँगीगी। यहाँ से राम, हनुमान, सुग्रीव आदि निन्यानबे कोटि मुनिराजों को तपस्या करके मुक्ति पायी। दरअसल माँगी और तुंगी एक ही पर्वत के दो शिखर हैं, जो एक-दूसरे से मिले हुए हैं। कहा जाता है कि निकट प्राचीन काल में यह एक बहुत बड़ा नगर था जो 'मूलहेड़' नाम से जाना जाता था। माँगी शिखर पर एक गुहा है, जिसमें मूलनायक महावीर की तीन फुट अवगाहना वाली श्वेत पद्मासन मूर्ति विराजमान है। तुंगी शिखर पर भी एक गुफा है जहाँ रामचन्द्र, नील, गवाक्ष आदि की वीतरागी मुनिअवस्था की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। तलहटी में भी तीन जैन मन्दिर हैं। चाँदवड़ का गुहा मन्दिर __यह चन्द्रनाथ दिगम्बर जैन गुफा के नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें अनेक जैन मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। कलिकुंड पार्श्वनाथ- यह महाराष्ट्र के साँगली जिले में अवस्थित है। इसका प्राचीन नाम कौंडिन्यपुर है। प्राचीन काल में यह करहाटक शासन के अन्तर्गत था। मान्यता है कि करहाटक एक समय शास्त्र विद्या और शस्त्र विद्या का विश्वविद्यालय था। कुम्भोज बाहुबली- यह कोल्हापुर जिले में है। महामुनि बाहुबली के नाम से पूरे क्षेत्र में इसकी 112 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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