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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रेनाइट की न होकर रवादार बलुये पाषाण की है। यहाँ यात्रा पर आनेवाले नर-नारियों में अत्यन्त उमंग और अद्भुत स्फुरणा देखी जाती है। अब तो यहाँ एक विशाल मन्दिर का निर्माण हो चुका है, जिसके चारों ओर धर्मशालाएँ हैं। विशाल मानस्तम्भ है। मूल नायक के अलावा मन्दिर में दायें-बायें अनेक देवियाँ हैं। इसी मन्दिर के नीचे के परिसर में क्षेत्र का कार्यालय है और सरस्वती भवन है। आज इस क्षेत्र का बहुत विस्तार हो चुका है। क्षेत्र पर कई सेवाभावी संस्थाएँ हैं। एक महिला महाविद्यालय भी है। नदी के उस पार पूर्वी किनारे पर शान्तिवीर नगर है। यहाँ एक विशाल मन्दिर है जिसमें 28 फुट ऊँची शान्तिनाथ की विशाल मूर्ति के अतिरिक्त चौबीस तीर्थंकरों और उनके शासनदेवताओं की मूर्तियाँ विराजमान हैं। एक गुरुकुल भी है। ___महावीर जयन्ती के अवसर पर इस अतिशयक्षेत्र पर प्रतिवर्ष एक सप्ताह तक विशाल मेले का आयोजन होता है। दीपावली के अवसर हजारों की संख्या में जैन यात्रियों के साथ-साथ मीणा, गूजर, जाटव आदि भी बहुत बड़ी संख्या में सम्मिलित होते हैं। तिजारा अतिशयक्षेत्र के स्थापनाकाल से पूर्व इस स्थान को 'देहरा' (देवालय) कहा जाता रहा है। अनुश्रुति है कि पहले यहाँ जैन मन्दिरों के खंडहरों का एक बड़ा सा टीला था। सन् 1956 में इस टीले की खुदाई में चन्द्रप्रभ की एक मनोहारी मूर्ति प्रकट हुई, जिसे सर्वप्रथम एक काष्ठ सिंहासन पर विराजमान कर दिया गया। पन्द्रहवीं शती में निर्मित इस मूर्ति के सामने अखंड ज्योति जलाई गयी, जो आज भी प्रज्वलित है। सच तो यह है कि राजस्थान में चौहान, परमार, सिसोदिया आदि अनेक राजपूत राजवंशों ने राज किया है। इनमें कोई जैन नरेश नहीं था, किन्तु उदयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, भरतपुर आदि राज्यों में अमात्य, प्रधान सेनापति एवं कोषाध्यक्ष पदों पर प्रायः जैन नियुक्त किये जाते थे। इसका कारण शायद जैनों की चारित्रिक दृढ़ता और ईमानदारी रही है। जैन आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न रहे हैं। राज्य को आवश्यकता पड़ने पर धन जुटा सकते थे। महाराणा प्रताप ने सेनापति भामाशाह की पूँजी से सेना जुटाकर अपनी मातृभूमि को दुश्मनों से मुक्त कराया था। महाराष्ट्र में भी अनेक अतिशयक्षेत्र हैं। साथ ही गजपन्था, मांगीतुंगी और कुन्थलगिरि निर्वाणक्षेत्र भी हैं, जहाँ से अनेक वीतरागी मुनिराजों ने तपश्चरण कर मुक्ति प्राप्त की। गुजरात प्रदेश के तीर्थस्थल हैं- तारंगा, सोनगढ़, शजय, घोघा, पावागढ़, विघ्नहर पार्श्वनाथ, अंकलेश्वर, अमीक्षरो पार्श्वनाथ मुख्य हैं। 110 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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