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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरहनाथ की लगभग ग्यारह फुट ऊँची मूर्तियाँ हैं। जैन-जैनेतर यहाँ मन में कामनाएँ लेकर आते हैं। गना जिले के अन्तर्गत ही पहाड़ों के बीचों-बीच थूवौन अतिशयक्षेत्र का विस्तार है। यहाँ मन्दिरों की संख्या पच्चीस है। अधिकांश मूर्तियाँ पन्द्रह-सोलह फुट अवगाहना वाली हैं। मन्दिर क्र.15 में भगवान आदिनाथ की मूर्ति पच्चीस फुट की है। मूर्ति के अतिशयसम्पन्न होने से इस मन्दिर की प्रसिद्धि भी सर्वाधिक है। चन्देरी की पद्मासन चौबीसी का अपना महत्त्व है। चौबीस तीर्थंकरों की अत्यन्त कलापूर्ण ये मूर्तियाँ पुराणों में वर्णित तीर्थंकरों के वर्ण की हैं। चन्देरी का प्राचीन नाम 'चेदि' राष्ट्र से सम्बन्धित है। कर्मभूमि के प्रारम्भ में इन्द्र द्वारा जिन 52 जनपदों की रचना की गई थी, चेदि उनमें से एक है। एक समय जैन संस्कृति का यह केन्द्र रहा है। यहाँ से लगभग तीन कि.मी. दूर खन्दारगिरि है, जहाँ अनेक जैन मूर्तियाँ और गुफाएँ चट्टानों में उकेरी गई हैं। ____टीकमगढ़ के निकट एक मैदान में परकोटे के भीतर अवस्थित पपौरा अतिशयक्षेत्र है। यहाँ शताधिक मन्दिर हैं। गर्भगृह और वेदियों के कारण यह संख्या अधिक बन गयी है। इनका निर्माणकाल अलग-अलग है- बारहवीं से बीसवीं शती तक का। इस क्षेत्र के अतिशयों को लेकर अनेक किंवदन्तियाँ हैं। टीकमगढ़ से लगभग बीस कि.मी. अहार क्षेत्र है। इस स्थान का पुराना नाम मदनेशसागर भी मिलता है। यहाँ मन्दिरों की कुल संख्या तेरह है- ऊपर पहाड़ पर छह और मैदान में सात । क्षेत्र से लगभग दो कि.मी. दूर पहाड़ों के बीच एक विशाल गुफा 'सिद्धों की गुफा' है। ___ सागर जिले के अन्तर्गत रहली के पास अतिशयक्षेत्र ‘बीना वारहा' के मुख्य मन्दिर में भूगर्भ से प्राप्त पन्द्रह फुट अवगाहना वाली भगवान शान्तिनाथ की मूर्ति है। इस क्षेत्र का अभी-अभी बहुत विकास हो चुका है। पास ही पटनागंज अतिशयक्षेत्र है, यहाँ की विशेष प्रसिद्धि भगवान पार्श्वनाथ की कृष्णवर्णी सहस्रफणावली की चार फुट चार इंच की चमत्कारी मूर्ति के कारण है। ___ दमोह जिले में अवस्थित कुंडलपुर अतिशयक्षेत्र प्राचीन और प्रसिद्ध है। यह कुंडलाकार पर्वतमाला से घिरा हुआ है। सम्भवतः इस क्षेत्र का नाम इसी कारण कुंडलपुर पड़ा होगा। पहाड़ के नीचे क्षेत्र पर एक सरोवर भी है। पर्वत पर और नीचे तलहटी में कुल साठ मन्दिर हैं। पहाड़ पर मुख्य मन्दिर 'बड़े बाबा' का मन्दिर कहलाता है। आम जनता में मान्यता है कि इस मन्दिर की साढ़े बारह फुट उत्तुंग यह चमत्कारी मूर्ति भगवान महावीर की है, लेकिन मूर्ति के कन्धे पर लटकते जटाजूट एवं वेदी के अग्रभाग में ऋषभदेव की यक्ष-यक्षिणी उत्र्कीण होने के कारण पुरातत्वविदों ने इसे तीर्थंकर आदिनाथ की मूर्ति कहा है। अभी हाल प्राचीन मन्दिर के निकट ही एक विशाल मन्दिर का निर्माण कर उसमें बड़े समारोह के साथ बड़े बाबा की मूर्ति की स्थापना की जा चुकी है। 108 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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