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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गये। तापस को उनका यह व्यवहार अपमानजनक लगा। वह मन ही मन क्रोधित हुआ। तभी उसने बुझती हुई आग सुलगाने के लिए एक बड़ा-सा लक्कड़ उठाया और ज्यों ही उसे कुल्हाड़ी से काटने को हुआ कि पार्श्वकुमार ने अवधिज्ञान से जान लिया कि इस लक्कड़ में नाग-नागिन हैं। उन्होंने तापस को लक्कड़ चीरने के लिए मना किया तो तापस आग-बबूला हो उठा और लक्कड़ काट डाला, जिससे सर्प-सर्पिनी के टुकड़े हो गये। कुमार ने उन्हें मन्त्र सुनाया, जिससे सर्पयुगल मरकर धरणेन्द्र-पद्मावती (यक्षयक्षिणी) हुए। कालान्तर में कषाययुक्त परिणामों से मरकर तापस भी असुर जाति का देव हुआ। तीस वर्ष की अवस्था में पार्श्वकुमार को जाति-स्मरण हो जाने से वैराग्य हो गया और वाराणसी नगरी के बाहर ही अश्ववन में दीक्षा धारण कर ली। ___भगवान सुपार्श्वनाथ का जन्मस्थान वर्तमान भदैनीघाट है, जबकि भेलुपुरा में भगवान पार्श्वनाथ की जन्मस्थली है। आजकल उसी परिसर में दो दिगम्बर जैन मन्दिर हैं। __ वाराणसी प्राचीन भारत की सात नगरियों में से एक है। यह स्थली काशी विश्वनाथ के कारण से सारे संसार में प्रसिद्ध है। इस नगरी का सम्बन्ध सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की विख्यात पौराणिक घटना से तो है ही, यह कबीर-तुलसी जैसे अनेक कवियों की रचनाभूमि रही है। यह नगरी हजारों वर्षों से विद्या केन्द्र रही है। यहाँ भारतीय वाङ्मयदर्शन और साहित्य के अध्ययन-अध्यापन का प्राचीन केन्द्र है। अहिच्छत्र ___ यह अतिशयक्षेत्र है। उत्तर प्रदेश के बरेली जिलान्तर्गत आँवला तहसील में यह स्थित है। प्राचीन काल में इस नगरी का नाम संख्यावती था। यह वही स्थान है, जहाँ तपस्यारत मुनिराज पार्श्वनाथ पर पूर्वजन्म के वैरी असुर कमठ ने घोर उपसर्ग किया और तभी धरणेन्द्र-पद्मावती यक्ष-यक्षिणी ने मुनिराज के ऊपर सहस्रफण फैलाकर उपसर्ग का निवारण किया। तब से इस नगरी का नाम अहिच्छत्र पड़ गया (तओ परं तीसे नगरीए अहिच्छत्र ति नाम संजायं– 'विविधतीर्थकल्प')। चैत्र कृष्ण चतुर्थी का वह दिन, यहाँ भगवान का ज्ञानकल्याणक हुआ। भगवान पार्श्वनाथ अपनी मुनिराज अवस्था में इस उपसर्ग से निर्लिप्त हो तपस्यारत रहे, उन्हें तभी केवलज्ञान हो गया। इन्द्रों और देवों ने आकर सोल्लास उनके ज्ञानकल्याणक की पूजा की। . अहिच्छत्र भारत की अति प्राचीन नगरी है। परवर्ती काल में यह उत्तर पंचाल की राजधानी बनी। महाभारत काल में द्रोण यहाँ के शासक थे। वर्तमान में यहाँ क्षेत्र पर एक शिखरबन्द मन्दिर है। एक वेदी पर हरित पन्ना की भगवान पार्श्वनाथ की अतिशय चमत्कारी मूर्ति विराजमान है। यह 'तिखालवाले बाबा' नाम से जानी जाती है। कहा जाता है कि किन्हीं अदृश्य हाथों ने रातों-रात कुछ क्षणों में 106 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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