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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निरन्तर स्मृति में बनाये रखने के लिए उस भूमि पर जो संरचना होती है, वह 'तीर्थ' कहलाने लगता है। तीर्थों के प्रकार दिगम्बर समाज में प्रमुखता से तीन प्रकार के तीर्थ प्रचलित हैं- सिद्धक्षेत्र (या निर्वाण - स्थल), कल्याणकक्षेत्र और अतिशयक्षेत्र । सिद्धक्षेत्र उसे कहते हैं, जहाँ से किसी तीर्थंकर या किन्हीं वीतरागी तपस्वी मुनिराज का निर्वाण हुआ हो। ऐसा कहा जाता है कि चरम एवं परम पुरुषार्थ के प्रतीक होने से निर्वाणकाल में ऐसे स्थान पर सौधर्म इन्द्र तथा अन्य देवगण भक्ति-भाव से पूजा को आते हैं और उस भूमि विशेष को चिह्नित कर देते हैं, फिर उसी स्थान पर भक्तजन श्रद्धापूर्वक उनके चरण - चिह्न स्थापित कर देते हैं। ऐसे स्थान धीरे-धीरे श्रद्धा के केन्द्र बन जाते हैं । सिद्धक्षेत्र : तीर्थंकरों के निर्वाणक्षेत्र कुल पाँच हैं : कैलास पर्वत (अष्टापद), चम्पापुर, ऊर्जयन्तगिरि (गिरनार ), सम्मेदशिखर और पावापुर । कैलास से आदितीर्थंकर ऋषभदेव, चम्पापुर से बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य, ऊर्जयन्तगिरि से बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ, पावापुर से अन्तिम तीर्थंकर वर्धमान महावीर ने मुक्ति प्राप्त की तथा शेष बी तीर्थंकरों और वीतरागी तपस्वियों ने सम्मेदशिखर से निर्वाण प्राप्त कर उस भूमि और वहाँ के सम्पूर्ण परिसर को पावन किया। इनके अतिरिक्त कुछ ऐसी निर्वाणभूमियाँ हैं, जहाँ से मात्र वीतरागी मुनि या मुनिराजों ने तपश्चरण कर निर्वाण लाभ किया । 'निर्वाण - भक्ति' में ऐसे अनेक उल्लेख हैं। उदाहरण के लिए कैलास पर्वत से भरत, बाहुबलि, भगीरथ आदि अनेकानेक महापुरुषों ने तपश्चरण कर मुक्ति पाई । गिरनार से भगवान नेमिनाथ के अतिरिक्त प्रद्युम्नकुमार, अनिरुद्धकुमार आदि मुनिराजों ने निर्वाण - लाभ किया। उक्त पाँच निर्वाण भूमियों के अलावा और भी ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहाँ से मुनिराजों ने मुक्ति प्राप्त की। पटना के कमलदह नामक स्थान से मुनि सुदर्शन कुमार ने, राजगृही से तीर्थंकर महावीर के गणधर, जम्बूकुमार, जीवन्धर आदि मुनिराज, गुणावा से गौतम स्वामी मोक्षधाम गये। महाराष्ट्र में गजपन्था को बलदेव आदि की, शत्रुंजय को तीन पांडवों (युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन) की तथा माँगीतुंगी को रामचन्द्र, हनुमान, सुग्रीव आदि मुनिराजों की निर्वाणस्थली कहा गया है। उड़ीसा के उदयगिरि-खंडगिरि, मध्य प्रदेश के सोनागिरि, द्रोणगिरि, चूलगिरि (बड़वानी), पावागिरि, सिद्धवरकूट तथा गुजरात के तारंगा, पालीताणा, पावागढ़ भी सिद्धक्षेत्र माने जाते हैं। इस प्रकार सिद्धक्षेत्रों की कुल संख्या छब्बीस मानी गयी है। कल्याणकक्षेत्र : ये वे क्षेत्र हैं जहाँ किसी तीर्थंकर का गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान में से कोई एक या एकाधिक कल्याणक हुए हों । हस्तिनापुर, शौरीपुर, अहिच्छत्र, वाराणसी, काकन्दी आदि ऐसे ही तीर्थ स्थान हैं। भगवान ऋषभदेव, अजितनाथ, 94 :: जैनधर्म परिचय For Private And Personal Use Only
SR No.020865
Book TitleJain Dharm Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2012
Total Pages876
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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