________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir वसुवनेति व्याख्यातम् // 52 // देवादेवानाम्। यौदेवौहोतारौ देवानामभिषजी ताभयांहोटभरांवषट्कारैश्च / अश्विनौचसरस्वतीच इंद्रम्इंट्रेतिविभक्तिव्य त्ययः / इंद्रियञ्च विषिदीप्तिञ्च हृदयेमतिञ्चदधुः। वसुवनेति समञ्जसम् // 53 // देवीस्तिस्रः। यादेव्य स्तिस्र: ज॥५२॥ देवादेवानाम् // दुवाडेवानम्भुिषजाहोगविन्द्रमप्रिश्व नां // वषट्कारै सरखतीत्त्विषिन्नहृदयमुति होर्तृभ्यान्दधुरिन्टि यवसुवनेव्वसुधेयस्यव्धन्तुबजे // 53 // देवीस्तुिस्र // देवीस्तुि सस्तुिस्रोदेवीरश्विनेड्डासरस्वती // शूषन्नमहीनाभ्यामिन्द्रायद धुरिन्ट्रियंवसुवनेव्वसुधेयस्यव्यन्तुयजं // 54 // दुवऽइन्द्रः॥ देव र सरस्वतीडाभारत्यः तिस्रोदेवीः अबविभक्तिव्यत्ययोध्याहारश्च वाक्यवशात् / तिमृभिर्देवीभिः- शिवम् सरस्वतीडाभारतीभिः / अश्विनौचडाचसरखतीच / शूषवलञ्च मध्येनाभ्याम् इन्द्रियञ्च / इन्द्रायइन्द्रे इतिविभक्तिव्यत्ययः / दधुः। वसुवनेति समानम् // 54 // देवन्द्रः / योदेवःइन्द्रः / 461 For Private And Personal