________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir शु. अश्विनौचतेजश्चअक्षणोः दूट्रियञ्चदधुः / एवमग्रेपि // 48 // देवीारः / यादेव्यःयनगृहहार: ताभिःअश्विनौभिषजौच / सरखतीच प्राणञ्चनसिनासिकायाम् वीर्यञ्चन्द्रियञ्च / हारः द्वाभिरितिविभक्तिव्यत्ययः। इन्ट् दधुः। वसुवनेइतिव्याख्यातम् // 4 // देवीउषासौ / नक्तो अश्विाभिषजेन्ट्रेसरखती॥ प्राणन्नब्बोन्नसिहारौदधुरिन्द्रि बँवसुवनेंव्वसुधेयस्यव्व्यन्तवज // 46 // देवोऽजुषासौं // देवोऽजुषा सांवश्विासुत्वामेन्ट्रेसरखती॥ बलुन्नब्वाचमास्य॒ऽउषाभ्यान्दधु रिन्द्रियबसुवनैव्वसुधेयस्यव्यन्तुयज // 50 // दे॒वौजोष्टीं // देवीजो ष्ट्री षासावितिप्राप्त छान्दसः प्रातिपदिकलोप: / यौदेव्यानक्लोषासौ ताभ्याम अश्विनौसुत्रामाशोभन-शिवम वाणी सरस्वतीच। वलञ्चवाचञ्च आस्येमुखे / इन्द्रियञ्चइन्ट्रे / उषाभ्यांनतोषाभ्यान्दधुः व्याख्यातमन्यत् // 50 // देवीजोष्ट्री। येदेव्यौजोषयिल्यौ द्यावापृथिव्यौइतिवा। अहोरात्र 46. For Private And Personal