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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir येअग्नय: हरयोहरितवर्णाः / धुमकेतवः धूमप्रज्ञानाः / वातजूतावातगमना: / उपद्यविद्युलोकप्रति / यतन्ते यत्नमाचरन्ति / वृथक् / पृथगितिप्राप्त वर्ण व्यातिः / पृथक्नाना / ताम् स्तमइतिशेषः // 2 // यजानः / मैत्रावरुणीगायत्री। यजन:अस्माकम् मित्रावरुणामित्रावरुणी / 11 यजचदेवान् यजच ऋतंयत्तम् बृहत्माहान्तम् / हेअग्ने यक्षियजच स्वन्दमस्वकीयंगृहम् // 3 // ताऽउपयवि // यतन्तुवधगुग्नयः // 2 // वान // यांनोमित्वा वरुणावदिवार // ऋतम्बुहत् // अग्नुवक्षिवन्दमम् // 3 // बुक्क्ष्वाहि // दैवहतमार // ऽअश्वार // ऽअग्ग्नेरथोरिव // निहोतापुर्व्य संद६॥ 4 // इचिपे // चरतु स्वाऽअन्न्या / अथाश्विनस्य / युक्षाहीतिव्याख्यातम् // 4 // हे विरूपे / विष्टुप् शुक्रस्य / हेराल्यहनीविरूपे हैं। नानारूपे / कृष्णारात्रिशुक्लमह: चरतःआदित्येन सहाहश्चरति इतरत्नअग्निनातुरात्रिः / स्वर्थशोभनार्थे / अन्यान्या वत्समुपधापयेते / अन्याएकाराविः एकमग्निरूपं वत्सम् अन्याएकमहः For Private And Personal
SR No.020861
Book TitleUvvatbhashya
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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