________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir ऋतये स्तेनहृदय स्तेनस्येव हृदय यस्य तम 11. // अथ पञ्चमे यू पे / वैरहत्त्वाय पिशुनम्परवृत्तसूचकम 1. विविक्त्यै क्षत्ता प्रतीहारम 2. प्रौपद्रष्ट्रयाय अनुक्षत्तारं प्रतिहार वकम 3. बलाय अनुचर सेवकम् 4 भूम्ने परिष्कन्दम् परितः स्कन्दति रेतः सिञ्चतितम 5. प्रियवादिन मधुरभाषिणम् 6. अरिष्टो अश्वमादम अश्वारोहम 7. स्वर्गाय लोकाय भागंदुग्धे भागदुधस्तम विभागप्रदम 8, वर्षिष्ठाय नाकाय पारवेष्टारम 8. // 13 // मन्धवे अयस्तापम यस्तपं लोहतापकम् 10, क्रोधाय ऋतयेस्तुनहृदयम् // ऋतयेस्तनहृदयंब्वैरहत्त्यायपिशुनंबिवित्यै / क्षुत्तारमौर्पदृष्ट्यायानुक्षुत्तारम्बलायानुचरम्भु म्नेपरिष्कन्दम्प्रिया यप्प्रियवादिनुमरिष्टट्याऽअश्वमाद 7 स्वगायलोकार्यभागदुघंच र्षिष्ठायनाकायपरिवष्टटारम् // 13 // मुन्न्यवेयस्तापम् // मुन्न्य यस्तापजोधायनिमुरंथ्योगायोक्तार शोकायाभिमुर्तारक्षे / निमरं नितरां मर्तारम् // 11 // अयषष्ठ यूपे। योगाय योक्तारं योगकर्तारम् 1. शोकाय अभिसार सन्मुखमागच्छुन्तम् 2. क्षमाय विमोक्तारम् विमोचनकरम 3. उल्क लनिकूलेभ्यः विष्ठिनम् त्रिषु तिष्ठतीति विष्ठीतम् विद्यादिषु स्थितं शोलवन्तमितार्थ : 4. वपुषे मानवतं पूजाया अभिमानस्य वा कर्तारम् सक् छान्दसः 5. भोलाय 153. For Private And Personal