________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallashsagarsun Gyanmandir दधत्य तिलिङ्गवचनव्यत्यय: धारयन्त्यइत्यर्थान्तरम् / ताःवमु बननायवसुधानायच व्यन्तुपिवन्तु त्वमपिहेहोतयंज // 36 // देवीउषासानता। येदेव्यौउषासानता उषाश्चरावेरपरकाल: नतोतिरात्रिनाम / देवमिंद्रवयोधसमायुषोधारयितारम् / देवीदेव्यौदेवम् एकोदेवीशब्दोदीप्तिवचनोसशुचिमिन्द्रमवईयन् // णिहाच्छन्दसन्द्रियम्प्राणमिन्द्रुब्बयो दधद्दमुक्नैव्वसुधेयस्यब्यन्तुबज // 36 // देवोऽउषासा नक्तां // दे वमिन्द्रवयोधसन्देवीदेवमवईताम् // अनुष्ड्भाच्छन्दसेन्द्रियम्बलु। मिन्ट्रेवयोदधहसुवनैव्वसुधेयस्यबीतांव्यजं // 37 // देवीजोष्टौ // परोदानादिगुणयुक्तषचन: देवशब्दोप्येवमेव / अबईताम् किंकुर्वन्यो / अनुष्टुभाछन्दसा इंद्रियवलंच इंट्रेवयआयश्च दधत्धारयन्त्यौ / तेवसुबननाय वसुधानायच वौतांपिवतामाजास्य स्वमंशन्त्वमपि हेहोतर्यज // 37 // देवीजोष्टी / येदेव्यौजोष्ट्रयौ जोषयिन्यौ। वसुधिती वसुधाल्यौ देवंदीतंवयोधसमाय षोधारयितारमिंद्रम देव्यौदेवम् अवईताम् / तेहत्त्याछन्दसा इंद्रियंत्रीय 587 For Private And Personal