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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAR भूतेन मया!नित्यं भीतेन, पुनः कीदृशेन ? त्रस्तेनोद्विग्नेन, पुनः कीदृशेन : त्रासवशादेव दुःखितेन. पुनः कीउत्तराध्या दृशेन ? व्यथितेन कंपमानसर्वांगोपांगेन. ॥७२॥ | भाषांतर यन सूत्रम् अध्य०१९ हे माता पिता! में परम उत्कृष्ट-जेनु वर्णन न थइ शके तेवी दुःख संबद्ध वेदनाओ भोगवी .केवी रीते? नित्य भयभीत रहेतो तया का११५२॥ त्रस्त-उद्विग्र, अने एत्रासने लीधेज हमेशां दुःखित तथा जेनां सर्व अंग उपांग थरथरता होय एवी हालतमा में ए वेदनाओ अनुभवी. तिब्वचंडप्पगाढाओ। घोराओ अइदुस्सहा ।। महाभयाओ भीमाओ| नरएसु वेइया मए ॥७३॥ में नरकने विषये-तीन-उप्र, चंड-उत्कट तथा प्रगाढ=उंदी, तेनी साथे घोरा भयानक, अतिदुःसह, महाभयजनक अने भीम एटले याद | आवतां हृदय कंपी उठे एवी (वेदनाओ) जाणी छे, अनुभवी छे. ७३ व्या०-हे पितरौ! मया नरकेषु वेदना वेदिता, असाताऽनुभूता. कथंभूता वेदना ? तीवचंडप्रगाढा, तीवा चासौ चंडा च तीवचंडा, तीव्रचंडा चासौ प्रगाढा च तीव्रचंड प्रगाढा. तीता रसानुभावाधिक्यात्, चंडोत्कटावक्तुमशक्या, गाढा बहुलस्थितिका. पुनः कीदृशा वेदना घोरा भयदा, यस्यां श्रुतायामपि शरीरं कंपते. पुन: कीदृशा ? अतिदुस्सहाऽत्यतं दुरध्यासा, दुःखेनानुभूयते, अत एव महाभया. पुनः कीदृशा वेदना? भीमा या श्रयमाणापि भयपदा. एकाथिकाश्चैते शब्दा वेदनाधिक्यसूचकाः ॥७३॥ हे माता पिता! में नरकमां वेदना भोगवी छे, अर्थात् असाता अनुभवी के. केवी वेदना? तीव्र चंड तथा प्रगाद-अधिकर. सानुभववाळी होवायी तीव्र, उत्कट तथा कही न शकाय तेवी होवाथी चंडा, अने घणाक समय सुषी चालु रहे तेथी प्रगाढा; वळी 2-% For Private and Personal Use Only
SR No.020858
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size7 MB
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