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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SAJHA --- - स्ति. कथंभूतं तत्स्थानं दुरारोह, दुःखेनारुह्यते यस्मिंस्तद् दुरारोहं दुःपापमित्यर्थः. पुनर्यत्र यस्मिन् स्थाने जरा-18 जब- मृत्यू न स्तः, जरामरणे न विद्यते. पुनर्यस्मिन् व्याधयस्तथा वेदना वा वातपित्तकफश्लेष्मादयो न विद्यते ॥८॥ भापतित बनवम् . अर्थ:--हे श्रीकेशी साधु लोकाग्रे-चौद रज्जुरुप लोकनु अग्रए लोकायम्, ते लोकाग्रमा एक ध्रुव एटले निश्चळ स्थान छे.18 ॥१३४९॥ V॥१३४९॥ ते स्थान केबु छे? दुरारोहम्-जेपर दुःखथी चहाय छे एq ते दुरारोहम् अर्थात् कष्टथी मेळवी शकाय ए. वळी यत्र-जे स्थानमा जरा तथा मृत्यु-वृद्धावस्था तथा मरण न स्त:-नथी, बळी जेमां व्याधिओ तथा वेदना के वात, पित, कफ, लेन्म बगेरे नथी. ८१1। मू०-ठाणे य इइ के वुत्ते । केसी गोयममवधी ॥ तओ केसी वुवंत तु । गोयमो इणमब्बी ॥ ८२॥ अर्थ:-श्रीकेशी साधुए श्रीगौतमने 4 के स्थान " कोने का ? त्यार पछी प प्रमाणे कहेता श्रीकेशी साधुने तो श्रीगीतमे आ कबु. ॥४२॥15 हे गौतम ! स्थानमिति किमुक्तं ? केशीश्रमणो गौतममित्यब्रवीत्. ततः केशीकुमारमिति ब्रुवंत गौतम इदमब्रवीत्.. अर्थ:-हे श्रीगौतम ! 'स्थान' ए कोने का छे १ एम श्रीकेशीसाधुए श्रीगौतमने क{. त्यार पछी ए प्रमाणे कहेता श्रीकेशी दकुमारने श्रीगौतमे आ कह्यु.॥ ८२ ॥ मु०-निव्वाणंति अवाहति । सिद्धी लोगग्गमेव य ॥ खेमं सिवमणायाहं । जं चरंति महेसिणो ।। ८३ ॥ मु०-तं ठाणं सासयं वास । लोयग्गमि दुरारुहं ॥ ज संपत्ताण सोयति । भवोहतकरा मुणी ।। ८४ ॥ युग्म अर्थ:-जे निर्वाण ए नामथी, अबाध ए नामथी, सिद्धि ए नामथी, लोकान ए नामथी, क्षेम ए नामथी, शिव ए नामश्री, अने अनाचाच ए | नामथी कहेवाय , अने जेने महरिओ पामेडे ते नित्य, कष्टवीचक्षय एg, निवास रुप स्थान लोकाग्रमा जे स्थानने प्राप्त थवेला संसारना प्रवा S AHU For Private and Personal Use Only
SR No.020858
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size7 MB
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