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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kotbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir EKARNAC अध्य०१३ _ नाथ क्षोभ नहि पामी धर्मध्यानथी डग्या नहि. तेने तेवा प्रकारना जाणी कमठे पोते विचार कयों हुआ पार्श्वनाथने जलवडे चराय-17 पनाम डुबाडी मारी नाखीश' एम विचार करी तेणे श्रीभगवान्नी उपर महामेघनी वृष्टि करी. श्रीभगवान्न अंग जलवडे नासिकापर्यंत भाषांतर ॥१३००॥ व्याप्त थइ गयु.॥९॥ अत्रांतरे कंपितासनेन धरणेंद्रेणावधिना ज्ञातभगवद्धतिकरण समागत्व स्वामिशीर्षोपरि फणिफणाटो १३.०॥ कृत्वा फणिशरीरेण भगवच्छरीरमावृत्य जलोपसर्ग च निवार्य भगवत्पुरो घेणुवीणागीतनिनादः प्रवरं प्रेक्षणं कर्तु समारब्धवान्, कमठासुरस्तादृशमक्षोभ्यं भगवंत धरणेंद्रकृतमहिमानं च दृष्ट्वा समुपशांतदर्पोभगवचरणौ प्रणम्य || गतो निजस्थाने. धरणेंद्रोऽपि भगवंतं निरूपसर्ग ज्ञात्वा स्तुत्वा च स्वस्थानं गतवान्, पाश्वस्वामिनो निष्क्रमण| दिवसाच्चतुरशीतितमे दिवस चैत्रकृष्णाष्टम्यामष्टमभक्तेन पूर्वाह्नसमयेऽशोकतरोरधः शिलापट्टे सुखनिषण्णस्य शुभध्यानेन क्षीणघातिकर्मचतुष्कस्य सकललोकावभासि केवलज्ञानं समुत्पन्नं. चलिनासनैः शस्तत्रागत्य केवल-11 केवलज्ञानोत्मवो महान् कृतः, पाश्चोऽर्हन् सप्तफणाहिलांनो वामदक्षिणपाश्चयोवैरोट्याधरणेंद्राभ्यां पर्युपास्य मानः प्रियंगुवर्णदेहो नवहस्तशरीरो भव्यसत्त्वान् प्रतिबोधयन् चतुर्विंशदतिशयसमेतः पृथिवीमहले विहरति. हा अर्थः-आ अरसामां आसन कंपवाथी धरणेंद्र अवधिज्ञानथी श्रीभगवान्नो वृत्तांत जाणी लइ त्यां आवी, नागनी फेण चडावी, नागना शरीरथी श्रीभगवान्ना शरीरने ढांकी लइ जळनी पीडानुं निवारण करी, श्रीभगवान्नी पासे बांसळी तथा वीणानां गीतोना है। अवाजोथी उत्तम दृश्य रचवानो आरंभ कयों. तेवा अडग अने धरणेंद्रे वधारेला महिमावाला श्रीभगवान पार्श्वनाथने जोइ गर्व शांत || MAHARA For Private and Personal Use Only
SR No.020858
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size7 MB
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