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॥ श्रीजिनाय नमः॥
उत्तराध्ययन सूत्रम् ॥८६॥
॥ श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् भाग ४॥
भाषांतर अध्य०१५ ॥८६॥
تاناشایسنان اللبناني في حياتنا
(मूलका-श्रीसुधर्मास्वामी टीकाकार-श्रीलक्ष्मीवल्लभगणी)
(मूल, मूलार्थ, टीका अने टीकाना भाषांतर सहित )
॥ अथ पंचदशमध्ययनं प्रारभ्यते ॥ चतुर्दशेऽध्ययने निर्निदानस्य गुणः प्रोक्तः, स च निर्निदानगुणो हि मुख्यवृत्त्या भिक्षोरेव भवति अतो भिक्षोर्लक्षणमाह ___चतुर्दश अध्ययनमा निर्निदाननो गुण कह्यो पण ते निनिंदानाख्य गुण मुख्य वृत्तिथी तो भिक्षुनेज होय माटे आ पंचदश अध्ययनारंभमां भिक्षुनांज लक्षण कहे छे..
मोणं चरिस्सामि समिच्च धम्म । सहिए उज्जुकडे नियाणछिन्ने ॥
संथवं जहिज अकामकामो अन्नायएसी परिवए जे स भिक्खू ॥१॥ (मोण चरिस्सामि) हुँ' मुनिपणु ग्रहीश (धम्म रायेच्च) धर्मने अंगीकार करीश (सहिए)बीजा स्थवीर साधुओनी साथे रहे तो होय (उज्जुकडे) माया रहित तथा (निआणछिने) नियाणारुपी शल्यने छेदीने तथा (संथ) संबंधीओना परीचयने (जइिज) तजतो
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