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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie व्या-राजा इषुकारी, देव्या पदराज्या कमलया सह, ब्राह्मणो भृगुनामा पुरोहितो राज्ञः पूज्य: पुनर्लाह्मणी | उत्तराध्य पुरोहितस्य पत्नी यशा, च पुनरिकी ब्राह्मणब्राह्मण्योः पुत्रौ, एते सर्व परिनिवृता मोक्ष प्राप्ताः, इत्यहं ब्रवीमि. इति JE भाषांतर यनसूत्रम् ३६ अध्य०१४ सुधर्मास्वामी जंबूस्वामिनं प्राह. इतीषुकारीयमध्ययनं चतुर्दशं संपूर्ण. ॥ ५३ ।। इति श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रार्थदीपिका॥८५८॥ RE. यामुपाध्यायश्रीलक्ष्मीकीर्तिगणिशिष्यलक्ष्मीवल्लभगणिविरचितायामिषुकारीयस्यार्थः संपूर्णः ॥ १४ ॥ श्रीरस्तु ॥ ॥८५८॥ फरीने ते छये जीवो-जेवा के-राजा इषुकारी, देवी पट्टराणी कमलावती ए सहित, ब्राह्मण भृगु नामनो पुरोहित राजानो J पूज्य, तथा ब्राह्मणी-पुरोहितनी पत्नी यशा, अने तेना वे दारक-ए ब्राह्मण ब्राह्मणीना पुत्रो; ए सर्वे परिनित थया-मोक्षने EC पाम्याः 'एम हुं बोल छु,' आम सुधर्मास्वामी जंबूस्वामीने कहे छे. ए प्रमाणे इषुकारीयनामक आ चतुर्दश अध्ययन संपूर्ण थयु एवीरीते श्रीलक्ष्मीकीर्तिगणिना शिष्य लक्ष्मीवल्लभगणि विरचित श्रीमद् उत्तराध्ययन मूत्रनी अर्थदीपिका नामनी वृत्तिमा चतुर्दश इपुकारीय नामना अध्ययननो अर्थ संपूर्ण थयो. ॥ इति श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रस्य तृतीयो भागः समाप्तः ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020856
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1936
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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