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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie भाषांतर अध्ययन ॥५२४॥ | (चेव) अने [अप्पाण'] दुर्जय एवु मन (सव्व) र सर्व (अप्पेजिए) आत्मा जीताये सते (जि) जीताया छे. ३६ उत्तराध्य- DEL व्या- भी प्राज्ञ! आत्मा मन एव दुर्जयं, तस्मिन्नात्मनि जिते सर्वमेतज्जितं. एतत्किं किं तदाह-पंचेंद्रियाणि, पन सूत्रम् च पुनः क्रोधो मानो माया, तथैव लोभश्चकारान्मिथ्यात्वाविरतिकषायादिकं, एतत्सर्वमरिचक्रमात्मनि जिते जित॥५२४॥ | मिति ज्ञेयं, यत्पूर्व ये केचित्पार्थिवा अनम्रा इत्युक्तं तस्योत्तरं प्रोक्तं. ॥३६॥ ____ अर्थ-ई प्राज्ञ! आत्मा मन एज दुर्जय छे, ए आत्मा जीतायो एटले पांचे इन्द्रियो, क्रोध, मान, माया, तेमज लोभ; आ| | सर्वे जीताया समजवां. गाथामा 'च' छे तेथी मिथ्यात्व अविरति कषाय इत्यादिक सघळ शत्रमंडळ एक आत्मा जीतायाथी जीताइ a गयेलु जाणी लेवु. ३६ पूर्व गाथामां देवेन्द्र 'जे केटलाएक अनम्र यार्थिवो छे' एम जे कयुं हतुं तेनुं उत्तर आ गाथाथी अपाय गयुं. एयम निसामित्ता । हेऊकारणचोइओ॥ तओ नीम रायरिसिं। देविंदो इणमब्बवो ॥३७॥ ३७ गाथानो अर्थ १७ मी गाथा प्रमाणे व्या--एतद्वचनं श्रुत्वेंद्रः पुनर्नमि राजर्षिप्रतीदमब्रवीत्. ॥३७॥ (आ टीकानो अर्थ आगळ प्रमाणे) | जइत्ता विउले जैण्णे भोइत्ता सैमणमाहणे ॥ दुचा भुच्चा य जट्टा य तेओ गच्छासि खेत्तिया ॥३८॥ मूल-(विउले) विस्तीर्ण एवा (जपणे) यशो (जात्ता) करावीने (समण माहणे) भ्रमण ब्राह्मणने (भोइत्ता) भोजन करावीने तथा (दया) दान भापीने तथा (भुथाय) पोते भोगो भोगवीने, तथा (जटाय) पोते यशो करीने (तो) त्यारपछी (वतिभा) हे क्षत्रिय! (गच्छसि) तमे जाओ. ३८ HALISAALTKAALAAMr For Private and Personal use only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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