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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्यपन इत्रम भाषांतर अध्ययन ॥५२०॥ ॥५२०॥ | मारीनाखीने पछी तेनुं सर्वस्व हरीलेनारा, तथा ग्रंथिभेदक एटले कातर छरा बगेरेथी लोकोनी गांठ तोडनारा गंठी छोडा, तस्क| रोने नीकालीने नगरनु क्षेम=निरुपद्रवता साधीने पश्चात् परिव्रज्या ग्रहण करो. २८ एयमé निसामित्ता । हेऊकारणचोइओ ॥ तओ नमिरायरिसी। देविंदमिणब्बवी ॥२९॥ २९मी गाथानो अर्थ १३मी गाथा प्रमाणे जाणवो. व्या० --तत एतद्वचनं श्रुत्वा नमिराजर्षिरिंद्रप्रतीदं वचनमब्रवीत्. ॥२९॥ (आ टोकानो अर्थ अगाउ प्रमाणे) ___ असई तु मेणुस्सेहिं । मित्थादंडो पर्युर्जए ॥ अकारिणोत्थे बझंति । मुच्चई कारगो जणो ॥३०॥ | मूल (असहं तु) अनेकवार (मणुस्सेहि) मनुष्योए (मिच्छादंडो) मिथ्या दंड [पजुजए] कराया छे. (अत्थ) आ जगतमा [अकारिणो] चोर्यादिक नहि करनाराओ पण (बझंति) बंधाय छे, (कारगो जणो) चौर्यादिक करनार मनुष्य (मुच्चद) मुकाय छे. ३० व्या-असकृद्वारंवारं मनुष्यमिध्या वृथैवापराधरहितेषु निरपराधजीवेष्वज्ञानादहंकारद्धा दंडः प्रयुज्यते, यतो पत्र संसारेऽकारिण आमोषादिक्ररकर्मणामकारो बध्यते, कारकाचामोषादीनां क्रूरकर्मणां करिश्च जना मुच्यते, अनेन तेषां तु ज्ञातुमशक्यत्वेन क्षेमकरणस्याप्यशक्यत्वं प्रोक्तं, यदिद्रियाण्यामोषतुल्यानि ज्ञेयानि, तान्येव जेयानि. अर्थ-अत्र=आ संसारमा असकृत वारंवार मनुष्योए मिथ्यादंडना प्रयोगो कराय छे. एटले के-निरपराध जोवोने अज्ञानथी अथवा अहंकारथी-दुराग्रहथी मिथ्यादंड देवाय के जेने लीधे कोइ कोइ वार अकारी-चोरी आदिक कर कर्म नहिं करनारा बंधाय छे For Private and Personal Use Only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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