SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तच्छिरसि पुष्पवृष्टि चक्रुः, भीताः संतो विप्रास्तस्य स्तुतिं कृत्वा वारंवारमाशीर्वादमुच्चरंति. अथ करकंडुरेवमुवाचाहो उत्तराध्य ब्राह्मणा एते भवद्भिश्चांडाला गर्हितास्ततः सर्वेऽप्यमी वाटधानकवास्तव्याश्चांडालाः संस्कारैब्राह्मणाः कार्याः, संस्कायन मुत्रम् BFभाषांना अध्ययन रादेव ब्राह्मणो जायते, न तु जात्या कश्चिद्ब्राह्मणो भवतीति भवदागमवचनात्. अथ ते ब्राह्मणाः प्रकामं भीतास्तन्नगरवाटधानकवास्तव्यांश्चाडालान् संस्काराह्मणान् चक्रुः उक्तं च-दधिवाहनपुत्रेण । राज्ञा तु करकंडुना ॥ वाटधान. ET४६५ | कवास्तव्या-श्चांडाला ब्राह्मणीकृताः॥१॥ अत्युत्सवेन कांचनपुरे प्रवेशितः स करकंडुरमात्यैन्यपट्टेऽभिषिक्ता, क्रमात्म महाप्रताप्चमत्. आ चांडाल कुटुंबसहित पृथ्वीपर फरती भटकतो कांचनपुर आवी पहींच्यो. बनाव एवा बन्यो के कांचन पुरनो राजा अपुत्र JE गुजरी गयो एटले मंत्रिोए ए राजाना घोडाने अधिवासित करी छोडयो ए घोडो फरतो फरतो गाम बहार ज्यां पेला त्रण जण मूता हता त्यां आधी करकंडू सामे जोइ हेपारव [हणहणाट] कर्यो, नगरना लोकोए करकंडूने शुभलक्षणवान् जोइ जय जय शब्द | | उच्चार्या. वगर वगाडयां वाजां पोतानी मेळे वाग्यां; स्वयं छत्र तेना मस्तक उपर धराणुं के तरतन मंत्रियोए नवां वस्त्र पहेरावी ए करकंडूने ते घोडापर बेसाडी ज्यां नगरजनना परम हर्ष साथे पुरमा प्रवेश करावे हे त्यां 'आ तो म्लेच्छ छे' आम बोलता ब्राह्मणो न मान्या. आ उपरथी क्रुद्ध ययेला करकंडूए ए दंड जो रत्ननी पेठे हाथमां धर्यो ते वारे अधिष्ठातृ देवोए आकाशवाणी कही के HBE 'जे कोइ आ राजानी अवगणना करशे तेना मस्तक उपर आ दंड पडशे.' आम बोली देवताओए तेना मस्तक उपर पुष्पनी दृष्टि करी. आ जोइ ब्राह्मणो भयभित बनी तेनी स्तुति करवा लाग्या; अने वारंवार आशिषो उच्चारवा लाग्या. त्यारे करकंडू एम बोल्या For Private and Personal Use Only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy