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उत्तराध्य
पन सूत्रम्
॥४१९ ॥
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मूलार्थ: - ( बालस्स) मृखेनी (आवई बहलिमुआ ) आपत्ति अने वध एवी (दुइओ) नरक अने तिर्यच एवे (गइ) गति थाय हे (ज) जेथी (लोलया) लंपटपणा करीने (जिए) जीतायेलो (सढे) शठ एवो ते (देवत्तं) देवपणु (च) अने ( माणुसतं) मनुष्यपणु ए गतिने हारी गयो छे. १७
व्या० – बालस्य मूर्खस्य द्विधा गतिर्भवेत्, कथंभूता गतिः? 'आवईवहमूलिया' आपद्वधमूलिका, आपदोविपदोवधस्ताडनादिः, आपदव वधश्वापदधौ तौ मूलं यस्याः सापद्वधमूलिका, जं इति यस्मात्कारणात्स वालो मूर्खो देवत्वं मानुषत्वं च हारितः कीदृशः सन्? लोलया लांपटथेन जितः पुनः कीदृश: ? शठो धूर्तः ||१७||
अर्थ :-- बाल = मूर्खनी द्विधा = चे प्रकारनी गति धाय छे आपद्वधमूलिका=आपद् विपत्ति, वध ताडनादि, कांतो आपद् छे मूल जेनुं एवी गति होय अने कांतो वध छे मूल जेनुं एवी होय; कारण के ते बाल = मूर्ख बोलता= विषयलंपटतामां यता शठ=धूत नीने देवत्व तथा मानुषत्व तो हारी गयो होय . १७
तंओ जिएं सया होई । दुबिहं दुग्गंए गएँ । दुईहा तस्से । उम्मेग्गा । अाए सुचिरोदवि ॥१८॥ मूलार्थ - (तो) त्यारपछी (जिए) हारीगयेलो ते मूर्ख (सई) सदा (दुविदं) नरकतिर्यचादि ( दुग्गइ) दुर्गतिने (गए) पामेलो पोज (होइ) होय छे, (तस्स) ते मूर्खने (सुचिरादवि) घणो वो पण (अद्धार) काळ गये सते (उम्मग्गा) नरकतिर्यचादो गतिथी नीकळवु (दुलहा ) दुलभ छे. १८
व्या०—ततो देवत्वमनुष्यत्व जयाद्देवगतिमनुष्यगतिहारणात्स मूर्खः असकृद्वारंवारं दुर्गतिं गतो भवतीत्यध्याहारः
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भाषांतर अध्ययन७
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