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कर्तित थाय छे-अर्थात् पीडाय छे. आ लोकमां धन मेळवामा क्षुधा तथा तृषा टाढ तडका वायु वर्ग वगेरे सहन करे, वली २८ उत्तराध्य
भाषांतर Deपर्वतो उपर चडवां, समुद्रपार जवां, राजाओनी सेवा करवी, संग्रामना प्रहार सहन करवा; इत्यादि क्लेश वेठी धनोपार्जन थाय. | यन सूत्रम्
अध्ययन परभवमां पण विविध नरक क्षेत्रनी वेदनाओ; परम अधार्मिक-निर्दय यातनावद पुरुयोर कराती अनेक पीडाओ सहन करवी इत्यादि. ॥२९८॥ परभवमां प्राणीने केम पीडाय छे ? तेनो हेतु दर्शावे छे-कृतमोते उपार्जित करेलां कर्मोनो मोक्ष भोगव्या विना क्षय यतो नथा. ॥२९८॥
अत्र पुनश्चौरकथा-कापि ग्रामे कोऽपि चौरो दुरारोहे मंदिरे क्षात्रं दत्वा द्रव्यं लात्वा स्वगृहं गतः, प्रत्यूषे कः किंबदतीति वार्ताश्रवणाय क्षात्रासन्नलोकमध्ये गतः, लोकास्तु तत्रत्यं वदंति कथमत्र लघीयसि क्षात्रे चौरः प्रविष्टो निर्गतो वेति लोकवाक्यं श्रुत्वा स्वकटीं विलोकयन् भूपनरधृतो व्यापादितश्च. ॥ ३ ॥
आ विषयमां एक बीजी चोरनी कथा कहे -कोइ गाममां कोई एक चोर एक-क्यायवी उपर न चडी शकाय तेवा घरमां खातर दइ द्रव्य लइने पोताने घरे गयो. सबारमां-ते चोर कोण कोण शुं शुं बोले छे ? ते जाणवा ए खातर ठेकाणे जइने उभो. त्यां जोवा मळेळा लोको खातरजें फांडं जोइने एक बीजा वात करता हता के-आ नाना खातर-घांकोरामांथी चोर केम पेठो हशे अने नीकळयो केम दृशे? एनी केड छोलाणी नहिं होय? आ सांभळी पेलो चोर पोतानी केड तरफ नजर करवा जाय छे तेवो राजाना माणसोए पकडीने मार्यो. ॥ ३ ॥ एवीरीते ए चोर पोतानाज कर्मथी पीडा पाम्यो. संसारमावन्न परस्स अट्ठा । साहारणं जं च करेई कम्मं ॥ कम्मैस्स ते तस्स उवेयकाले। न बंधवा बंधवेयं उविति
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