________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथमः प्रस्तावः / ततो विहस्य तेनोक्तं माभेषौर्भद्र किंचन / नाधुना त्याजयामौदमनमेधि निराकुलः // 11 // अहमत्याजयं पूर्व तवैव हितकाम्यया / यदि नो रोचते तुभ्यं तुष्णोंभावोऽत्र मे मतः // 42 // यचैतदुपदिष्टं ते प्राक्कर्त्तव्यतया मया / तदत्र भवता किंचित् किं सम्यगवधारितम् // 63 // सोऽब्रवीनैव तन्नाथ किंचित्मलक्षितं मया / केवलं पेशलालापेस्तावकर्मादितो हृदि // 4 // अज्ञातपरमार्थापि सतां नूनं सरखतौ / चेतोऽतिसुन्दरत्वेन प्रौणयत्येव देहिनाम् // 65 // अन्यत्र चेतसो न्यासे नयने तव संमुखे / विशत्येकेन कर्णेन वचो यातौतरण मे // 86 // यच्चात्र मनसो नाथ वैधुर्य मम कारणम् / तत्मांप्रतं भयापायात् कथयामि निराकुलः // 6 // यदा ह्याकारितः पूर्वं भवद्भिः करुणापरैः / अहमनप्रदानार्थं तदा मे हृदि वर्त्तते // 18 // लास्यत्येष क्वचित्रौत्वा मामकं भोजनं नरः / तदाकूतवशागाढं ध्यात्वा चेतनतां गतः // 66 // यदा प्रबोधितः पश्चादञ्जनेन सुवमलैः / प्रम भवद्भिश्चिन्तितं वर्णं नश्यामौति तदा मया // 30 // यदा तु तोयपानेन शौतौ कृत्य वपुर्मम / कृतं मभाषणं नाथै स्तदा विशंभमागतः // 1 // For Private And Personal Use Only