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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औ०१९ रा० २० जी०२१ प्रज्ञा०२२ ॥३४॥ सये०१२३ | चं०/०४ जं० २५ नि० २६ प्रकी०६७ जो निच्छएण गिण्हइ जो पुण अत्थं अवहरह ,,,,दसणमाओ ,,, सणसुद्धो ..,, पत्तम्भूओ जो भत्तपरिनाए जोयणसहस्स गाउय छग्गाउ० जो रागदोसरहिओ जो वाससयं जीवा ,, सम्मं भूयाई ,, साइआरचरणो , सुत्तमहिजंतो ,, संखिजभवट्टिई जोहाण य उप्पत्ती जो हेउमयाणतो झाणाण. परमसुकं २७-१६७५ | उविए पायच्छित्ते २७-२९८ | णाणावरणिजस्स २२-२९५० २७-३७८ | ठिती सव्वेसिं भाणियव्या २१-२२१सू० णाणावरणिजस्स गं २२-२९३सू० २७-६२१ डझतेणवि गिम्हे २७-७०६ का २२-२९८सू० २७-६२२ णक्खत्ततारगाणं २४-६६ णाणाविहसंडाणा २२-४४ | पक्खत्तसहस्सं |णाणी चेव अण्णाणी० २१-२४ऽसू० णक्खत्ताण सहस्सं २१-३८ ., जहा सम्महिट्टी जग्गोह गंदिरुक्खे २२-१९ , णं णाणित्ति २२-२४२सू० णट्टविही णाडगविही २५-३७ णामिस्स णं कुल० २ ५-३१सू० णपुंसकवेदस्स गंभंते ! २१-६२सू० । | णिच्छिण्णसव्वदुक्खा २१-६०सू० |णिद्धस्स णिद्धण दुयादि० २२-२०० २७-१८५९ णरगं तिरिक्खजोर्णि णिबंचजंबुकोसंब० २२-१५ २७-३०२ णयमे वसंतमासे २५-९२ | गेरइयाण सम्बे सम० २२-२०८सू० २२-१२५ | णवि अस्थि माणुसाणं समा० २२-२०६सू० २७-६३३ णवि से खुहा ण विलिनं २५-२० | सप्पंमि णिवेसा २५-२९ | पंदिस्सरवरपणं दीवं २१-१८५० | तइया कीस न हाया २७-१८०० २२-१२४ गंदीसरोदं समुई २१-१८६सू० तईयाए मंदया नाम २७-४८१ २७-५९६ | गंदुत्तरा य गंदा २५-७२ | तए पं० अकालपरिहीणा २०-१४सू० ॥३४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020842
Book TitleUpang Prakirnak Sutra Vishaykram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Pustak Pracharak Samstha
PublisherJain Pustak Pracharak Samstha
Publication Year1948
Total Pages183
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_index
File Size10 MB
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