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तुलसी शब्द-कोश
पालिबो : भक००कए० (सं० पालयितव्यम् >प्रा० पालिअव्वं>अ० पालिव्वउ) ।
पालन करना । 'लाभ समय को पालिबो।' दो० ४४४ पालिये : पालिऐ । विन० ३५.४ पालिहिं : आ०भ०प्रब० (सं० पालयिष्यन्ति>प्रा० पालिहिति>अ० पालिहिहिं)।
पालन करेंगे। 'पितु आयसु नालिहिं दुहु भाई।' मा० २.३१५.४ पालिहि : आ०भ० प्रए० (सं० पालयिष्यति>प्रा० पालिहिइ)। पालन करेगा । 'गुरु
प्रभाउ पालिहि सबहि ।' मा० २.३०५ पालिहैं : पालिहिं । 'बालक ज्यों पालिहैं कृपालु ।' हनु० १३ पालिहै : पालिहि । 'को कृपाल बिनु पालिहै ।' मा० २.२६६ पाली : भूक०स्त्री० । पालन की, रखी। मैं सबकी रुचि पाली ।' विन० १४७.३ पालु : (१) आo=पालि (अ.) । तू पालन कर । 'पालु बिबुध कुल करि छल
छाया ।' मा० २.२६५.२ (२) पाल+कए० । एकमात्र रक्षक । 'प्रनत पाल ।'
विन० १५४.१ पालें : पालन करने से । 'स्वामि सिख पालें.. पग परहिं न खालें ।' मा० २.३१५.५ पाले : (१) भूकृ०० (सं० पालित>प्रा० पालिय) । रक्षित । 'मोसे ते कृपालु
पाले पोसे ।' विन० २५०.१ (२) क्रि०वि० (सं० पल्ये, पल्ले) । फन्दे में, पकड़ में । 'परेहु कठिन रावन के पाले ।' मा० ६.६०.८ (सं० पल्ल =पल्य बड़े डहरे को कहते हैं जिसमें अनाज रखते हैं। उसके भीतर फंसे हुए प्राणी का श्वासरोध स्वाभाविक है। इसी आधार पर 'पाले पड़ना' या 'पल्ले पड़ना' मुहावरा चल
पड़ा लगता है।) पलेहु : आ०-भ०+आज्ञा-मब० । तुम पालन करना । 'पालेहु पुहुमि प्रजा
__ रजधानी।' मा० २.३१५.८ पालो : पाल्यो । पाला हुआ । 'पालो तेरे ट्रक को।' हनु० ३४ पाल्यो : भूक०कए० (सं० पालित:>प्रा० पालिओ) । पाला हुआ । 'पाल्यो हौं
बाल ज्यों।' हनु० ३६ । पावर : वि.पु. (सं० पामर>अ० पावर)। नीच, गवार, मूर्ख । मा० २.१६४ पावरन्हि : पावर+संब० । पामरों । 'पावरन्हि की को कहै ।' मा० १.८५ छं० पावरी : पारी+ब० । खड़ाउएँ । 'प्रभु करि कृपा पाव॑री दीन्हीं।' मा० २.३१६.४ पावरी : सं०स्त्री० (सं० पादुका>प्रा० पाउल्ला>अ० पाअडी) । खड़ाऊँ ।' मा०
२.३२५ पावर : पावर+कए । कोई मूर्ख । 'जो पावरु अपनी जड़ताई।' मा० २.१८४.६ पाव : (१) पाउ ।पैर । 'पंथ देत नहिं पाव ।' वैरा० १२ (२) पावइ । पाता है;
पा सकता है । 'घृत कि पाव कोउ बारि बिलोएँ।' मा० ७.४६.५
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