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तुलसी शब्द-कोश
हमरेहि : हमारे ही । 'सो जनु हमरेहि मार्थे काढ़ा ।' मा० १.२७६.३ हमरो : हमारो । 'हमरो मनु मोहैं।' कवि० २.२१
हम-हम : अव्यय (सं० अहमहमिका - स्त्री० ) । मैं ही कर लूं - पालूं की प्रवृत्ति, पहले 'मैं ही ' वाली अहंकार भावना । 'हम हम करि धन धाम सँवारे ।' विन० १६८.२
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हमहि: हमको, हमारे प्रति । 'कबहुं कृपाल हमहि कछु कहहीं ।' मा० ७.२५.२ हम : (१) हमने भी । 'हमहुं सुनी कृत पर तिय चोरी ।' मा० ६.२२.५ (२) हमारे द्वारा भी । 'हमहुं कहबि अब ठाकुर सोहाती । मा० २.१६.४ ( हमारे द्वारा भी कहनी होगी ) ।
हमैं : हमहि । हम को । 'हमैं पूछिहै कोन ।' दो० ५६४
हय: सं०पु० (सं० ) । अश्व, घोड़ा । मा० २.१४२.८
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हमहू : हम भी । 'हमहू उमा रहे तेहि संगा ।' मा० ६.८१.२
हमार, रा : (१) वि० सर्वनाम (सं० अस्मदीय > अ० अम्हार, महार) । मा० १.६६; ७७.२ (२) ममत्व, विषयों के प्रति हमारापन, अपनेपन की भावना | दे० हम - दो० १६
हमारि, री: हमार + स्त्री० (अ० अम्हारि, री) । मा० २.११; १.८१.५ हमारें : (१) हमारे में 'नाथ एक गुनु धनुष हमारें । मा० १.२८२.७ (२) हमारे पास, हमारे यहाँ (हम को ) । 'होउ नास नहि सोच हमारें ।' मा० १.१६६.७
हमारे वि० सर्वनाम (दे० हमार ) । मा० १.६२.८ हमारो : हमारा + कए० । हमारा । कवि० १.१२
गृहँ : अश्वशाला में । मा० १.१७१.८
हमसाला : सं० स्त्री० (सं० हयशाला ) । वाजिशाला, घुड़सार, तबेला । मा०
६.२४.१३
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हयो : भूकु०पु०कए० (सं० हतः > प्रा० हओ > अ० हयउ ) । मारा (गया) । 'बल तुम्हारें रिपु यो ।' मा० ६.१०६ छं०
हर : (१) सं०पु ं० (सं० ) । शिव । मा० २.२३१ (२) (सं० हल ) कृषि का उपकरण - विशेष । 'न तु और सबै बिष बीज बए, हर हाटक कामदुहा नहि के ।' कवि० ७.३३ (३) (समासान्त में ) वि०पु० (सं० ) । हरने वाला, नाशक, दूर करने वाला | 'त्रिविध सूल-हर ।' कृ० २१ ( ४ ) हरइ । हरण करता है, हटाता है, मिटाता है । 'जिमि दिनकर हर तिमिर निकाया । मा० ६.५२.७ 'हर, हरइ, ई : आ० प्रए० (सं० हरति > प्रा० हरइ ) । हरण करता है । (१) संहार ( प्रलय ) करता है । 'जो सृजि पालइ हरइ बहोरी ।' मा० २. २८२.२ (२) निरस्त करता है, मिटाता है । 'हरह पाप कह बेद पुराना ।