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तुलसी शब्द-कोश
हकारे : भूक००० । बुलवाए, पुकारे, आमन्त्रित किये। पुनि करुनानिधि भरतु
हँकारे।' मा० ७.११.४ हंसत : वकृ.पु. (सं० हसत्>प्रा. हसंत) । हंसता, हंसते । मा० ६.११८.२ हँसनि : सं०स्त्री० । हंसने की क्रिया। 'हंसनि मिलनि बोलनि मधुर ।' दो० ४०६ हँसब : भकृ०० (सं० हसितव्य>प्रा० हसिअव्व) । हंसना । मा० २.३५.५ हंसहि : आ०प्रब० । हँसते हैं (थे) । 'आवत निकट हँसहिं प्रभु ।' मा० ७.७७ हँसा : भूकृ००। हास कर उठा । 'हंसा दससीसा।' मा० ६.२४.६ हँसाइ : पूकृ० । हँसी करवा कर (उपहसनीय होकर) । 'ख्वै हौं न पठावनी के ह हों
न हसाइ के ।' कवि० २.६ हँसाई : हँसाइ । अपनी हंसी करवा कर । 'तौ पनु करि होतेउ न हँसाई ।' मा०
१.२५२.६ हैसि : पूकृ० । हकर सा० ६.३२.६ हसिबे : भकृ०० । हंसने, उपहास करने । 'हसिबे जोघ हंसें नहिं खोरी ।' मा०
१.६.४ हसिहहिं : आ०भ०प्रब० (सं० हसिष्यन्ति>प्रा० हसिहित>अ० हसिहिहिं) । हंसेंगे
परिहास करेंगे । 'हसिहहिं कूर कुटिल कुबिचारी।' मा० १.८.१० हसिहहु : आ०भ०मब० (सं० हसिष्यथ>प्रा० हसिहिह>अ० हसिहिह)। हंसोंगे,
उपहास करोगे । 'हसिहहु सुनि हमारि जड़ताई ।' मा० १.७८.४ हँसिहै : आ०भ०प्रए । हंसेगा, उपहास करेगा। 'जग हंसिहै मेरे संग्रहे ।' विन०
२७१.३ हँसी : सं०स्त्री० । परिहास । हँसी करहहु पर पुर जाई ।' मा० १.६३.१ हंसें : हंसने से, परिहास करने से । 'हसिबे जोग हसें नहिं खोरी ।' मा० १.६.४ हसे : भूकृ००ब० । हास कर उठे । मा० ६.६१ छं० हंसेचें : (दे० हसेउँ) । मा० ६.२६.२ (पाठान्तर)। हसेहु : (१) आ० - भूकृ००+मब० । तुमने परिहास किया । 'हमहि हंसेहु सो
लेहु फल ।' मा० १.१३५ (२) भ०+आ०मब० । तुम परिहास करना।
'बहुरि हँसेहु मुनि कोउ।' मा० १.१३५ हंस : हंसहिं । हँसते हैं । 'हंसे राघो जानकी लखन तन हेरि हेरि ।' कवि० २.१० हँसैहौं : आ० भ० उए । हँसाउँगा, उपहास कराऊँगा। 'परबस जानि हस्यो इन
इंद्रिन निज बस व न हँसहौं।' विन० १०५.३ हँस्यो : भूक ००कए । (१) हंसा । 'हँस्यो कोसलाधीस ।' मा० ६.६६ (२) हँसा
गया, परिहासास्पद किया गया। 'परबस जानि हस्यो इन इंद्रिन ।' विन० १०५.३
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