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तुलसी शब्द-कोश
करने वाले । 'लाहिं सुलच्छन लोग।' मा० १.७ क-अथवा (३) सं० ।
उत्तम लक्षण (चिह्न)। सुलच्छनि : सुलच्छन+स्त्री० । श्रेष्ठ लक्षणों वाली। मा० १.६८.७; १३१.६
(पाठान्तर)। सुलभ : वि० (सं०) । सरलता से प्राप्य । मा० ७.३५.३ सुलभु : सुलभ+कए । मा० २.३०४.३ सुलाखि : पूकृ० । (१) (सं० सुलक्ष्य>प्रा. सुलक्लिाअ>अ० सुलक्खिा)। भली भांति लक्षणों से लक्षित कर, खरा-खोटा पहचान कर । (२) (अरबी-सलाखा
-खाल खींचन) परखाने के लिए ऊपर की पत्तं खींच कर (सोने को परखाने के लिए ऐसा करते हैं) । 'और भूप परखि सुलाखि तोलि ताइ लेत।' कवि०
७.२४ सुलाभ : श्रेष्ठ उपलब्धि । गी० १.६२.५ सुलाहु : (दे० लाहु) एकमात्र उपलब्धि । 'एक भरत जनमि जग सुलाहु लहा है।'
गी० २.६४.४ सुलोचन : सं०+वि० (सं०) । (१) सुन्दर नेत्र । 'चित सुलोचन कोर ।' दो०
२३६ (२) सुन्दर नेत्रों वाला । मा० २.२७४.६ सुलोचनि : वि०+संस्त्री० (सं० सुलोचनी)। श्रेष्ठ नेत्रों वाली सन्दरी। मा०
२.२५
सव : सुअ । पुत्र । 'पवन-सुव ।' हनु० १ सुवन : (१) सं०पू० (सं० सुवन =सूर्य, चन्द्र, अग्नि)। पुत्र । 'पांडुसुवन ।'
दो० ४१६ (२) वि.पु । उत्पादक, प्रसव करने वाला। रा०प्र० १.५.३ पुत्र
अर्थ में यह 'सूनु' का रूपान्तर लगता है। सुवा : सुआ । तोता पक्षी । 'सोई सेंबर तेइ सुवा ।' दो० २५६ सुवेश : वि० (सं०)। उत्तम वेषविन्यास (परिधानालंकार) से सम्पन्न । मा०
३.११.७ सुषमा : सं०स्त्रो० (सं.) । सम संघटना की शोभा; योग्य अङ्गसंयोजन वाली
सुन्दरता।' मा० २.२३७.५ सुषमाकर : सुन्दरता (सुषमा) की खानि; अति मनोहर । बर० १० सुषेन, ना : सं०० (सं० सुषेण) । वाल्मीकि के अनुसार चिकित्साविशेषज्ञ वानर
यूथपविशेष । गोस्वामी जी के अनुसार लड का निवासी वैद्यविशेष । मा०
६.५५; ५५.७ सुसंग : उत्तम सम्पर्क, सज्जनों का संसर्ग, सत्संगति । मा० ४.१५ सुसंगति : सुसंग। मा० १.७.८ सुसंगू : सुसंग+कए । मा० १.७.४
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