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तुलसो शब्द-कोश
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सुगढ़ : सुधर (सं० सुघट>प्रा० सुघड़-सगढ़) । सुदेश, व्यवस्थित योजना से
सम्पन्न-सुन्दर । 'सुगढ़ पुष्ट उन्नत कृकाटिका ।' गी० ७.१७.१० सुगति : सं०स्त्री० (सं.)। सद्गति, उत्तम फल की प्राप्ति, मोक्ष आदि पुरुषार्थ
की उपलब्धि । मा० २.७२.७ ।। सुगम : वि० (सं०)। (१) पहुंचने या प्राप्त होने में सरल । मा० ७.७३
(२) सुबोध, सरलता से बाध्य । 'उभय अगम, जुग सुगम नाम तें।' मा०
१.२३.५ सुगमु : सुगम+कए० । मा० २.७८.५ सुगाइ : आ०प्रए । दोषी होने का सन्देह करता है या करे । 'तुम्हहि सुगाई मातु
कुटिलाई।' मा० २.१८४.६ सगाढ़ि : वि०स्त्री० । अत्यन्त गाढ़ी=सुदढ तथा मोटी । 'बाती करै सुगाढ़ि ।'
मा० ७.११७ ग सुगान : उत्तम गीत । पा०म०ई० १२ सुगुन : उत्तम गुण, सद्गुण । दो० २३१ सुगुरु : सतगुरु । वि० ७७.२ सुमेह : ऊत्तम अनुकूल सुखयुक्त आवास । दो० २४ सुग्रंथ : सदग्रंथ । दो० ५५६ सुग्रीवं : सुग्रीव ने । 'तब सुग्रीवं बोलाए।' मा० ४.२२ सुग्रीव : सं०पु० (सं०) । वाली का अनुज जिसे राम ने वानर-राज बनाया था।
मा० ४.४.२ सुग्रीवहि : सुग्रीव को। 'तृन समान सुग्रीवहि जानी ।' मा० ४.८.१ सुग्रीवहुं : सुग्रीव ने भी । 'सुग्रीवहुं सुधि मोरि बिसारी ।' मा० ४.१८.४ सुग्रीवा : सुग्रीव । मा० ४.१.२ सुघट : वि० (सं०) । सुकर, जो सरलता से किया जा सके। 'अघटित घटन,
सुघट बिघटन ।' विन० ३०.२ (यहाँ 'सुघट' से 'सुघरित' का तात्पर्य
विशेष है)। सुघटित : वि० (सं०) । उत्तम रीति गढ़ा-बनाया हुआ, सुनिर्मित । 'धवल धाम
मनि पुरट पट सुघटित नाना भाँति ।' मा० १.२१३ सुघर : (१) वि०पु० (सं० सुघट>प्रा. सुघड)। सुदेश, समञ्जस, यथायोग्य
अङ्गरचना वाला । मा० १.३१४.६ (२) उत्तम घर । गी० ७.१६.४ सुघरनि : सुघर+संब । उत्तम घरों में । गी० ७.१६.४ -सुघरि : सुधर+स्त्री० । सुन्दरी, सुव्यवस्थित अङ्गों वाली, कमनीय स्त्री । 'बतिया
के सुघरि मलिनिया।' रा०न०
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