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तुलसी शब्द-कोश
"सिख सिखाइ : आ०प्र० (सं० शिक्षते>प्रा० सिक्ख इ)। सीखता है, अभ्यास
करता है । 'सिख इ धनुष बिद्या बर बीरू ।' मा० २.४१.३ सिख इअ : आ०कवा०प्रए । सिखाइए, उपदेश कीजिए, सिखाया जाय । 'तजि
सकोच सिख इअ अनुगामी ।' मा० २.३१४.७ सिख ई : भूकृस्त्री० (सं. शिक्षिता>प्रा. सिक्खि आ =सिक्खविआ)। सिखाई,
शिक्षित की । के ये नई सिखी सिखई हरि ।' कृ० ४१ सिखन : (१) सं०पु० (सं० शिक्षण>प्रा० सिक्खण)। सीखना । गी० ७.२३.२
(२) भकु० अव्यय । सीख ने । 'सींक धनुष हित सिखन सकुचि प्रभु लीन्ह ।'
बर०८ सिख ब : भकृ.पु० (सं० शिक्षितव्य>प्रा० सिक्खि अव्व) । सीखना, सीखना (होगा,
चाहिए) । 'राम लखन सब तुलसी सिख ब न आनु ।' बर० ४६ सिख ये : भूक००० । शिक्षित किये, बताये । 'मुनिबर सिखये लोकिको बैदिक
बिबिध बिधान ।' गी० १.५.४ सिखयो : भूकृ००कए । सिखाया, सिखाया हुआ। 'देत सिख, सिखयो न
मानत ।' विन० १५८.२ सिखर : सं०० (सं० शिखर)। चोटी, शृङ्ग । मा० १.१५६ सिख रन, नि : सिख +संब० । शिखरों। सिख रन पर राजति कंचन दीप अनी।'
गी० ७.२०.२ 'मनहुं हिमालय सिख रनि लसहिं अमर मृगनै नि ।' गी०
७.२१.१६ 'सिखव सिखवइ : आ०प्रए० (सं० शिक्ष यति>प्रा० सिक्खावइ=सिक्खवइ)।
सिखाता है । 'नृप हित हेतु सिख व नित नीती।' मा० १.१५५.३ सिखवत : वकृ०० (सं० शिक्षयत् >प्रा. सिक्खावंत=सिक्खवंत)। सिखाता
सिखाते । 'ऊधो परम हितू हित सिखवत ।' कृ० ४५ सिखवति : वकृ०स्त्री० । सिखाती । गी० १.३२.१ सिखवन : सं०० (सं० शिक्षण>प्रा० सिक्खावण=सिक्खवण)। सिखाना,
उपदेश । विन० १५६.४ सिखवनु : सिखावन+कए । उपदेश । 'सुदरि सिखावनु सुनहु हमारा।' मा०
२.६२.२ सिखवहिं : आ.प्रब० (सं० शिक्षयतिन्त>प्रा० सिक्खावंति =सिक्खावंति >अ०
सिक्खावहि सिक्लावहिं) । सिखाते-ती हैं । 'नारि धरम सिखावहिं मृदु बानी।'
मा० १.३३४.६ सिखवौ : सिखावहु (अ० सिक्खाबहु) । सिखावो, समुझावो। 'ब्रह्मा कहैं, गिरिजा
सिखावी, पति रावरो दानि है बावरो भोरो।' कवि० ७.१५३ सिखा : सं०स्त्री० (सं० शिखा) । (१) शिखर । (२) वृक्षादि का ऊपरी भाग ।
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