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तुलसी शब्द-कोश
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सातै : सं०+वि०स्त्री० (सं० सप्तमी>प्रा० सत्तमी>अ० सत्तवीं == सत्तवि)।
(१) सातवीं (२) सप्तमी तिथि । विन० २०३.८ सातो : सातों, सब-के-सब सात । समुद्र सातौ सोषिहै ।' कवि० ६.२ सात्त्विक : वि० (सं.)। सत्त्वगुणी, दुःख-मोहरहित, राजस-तामस प्रवृत्तियों से
शून्य-शुद्ध प्रकाशानन्दमय, उत्तम । मा० ७.११७.६ साथ, था : (१) सं०पु० (सं० सार्थ>सत्थ) । गोल, यूथ, संघ । 'गज चिक्करत
भाजहिं साथ ते।' मा० ६.७८ छं० (२) सह, संग में । सब मिलि जाहु
बिभीषन साथा।' मा० ६.१०६.३ साथरी : साथरी पर । 'ते सिय रामु साथरी सोए ।' मा० २.६१.३ साथरी : सं०स्त्री० (सं० स्रस्तर>प्रा० सत्थर) । बिस्तर, घास-फूस का बिछोना।
'कुस किसलय साथरी सुहाई ।' मा० २.६६.२ साथिन्ह : साथी+संब० । साथियों । साथिन्ह सों भुज उठाइ कहीं टेरे।' विन०
२२७.१ साथी : वि०पू० (सं० साथिक>प्रा. सत्थिअ) । साथ वाला, सहचर, अपने वर्ग
का सदस्य, सहवर्गी । गी० ५.१६.२ साथ, थू : साथ+कए । संग, सहयात्रा । 'केहि सुकृतीसन होइहि साथू ।' मा०
२.५८.३ सादर : वि०+क्रि०वि० (सं०) । आदर सहित, सम्मान पूर्वक । 'सेवत सादर समन
कलेसा ।' मा० १.२.१२ सादरु : सादर+कए० । 'सो सब सादरु कीन्ह ।' मा० २.२४७ सादें : वि.पु. (फा० सादः) । सादे से, साधारण से (सहित) । 'भूषन बसन
बेष सुठि सादें। मा० २.२२१.६ साध : (१) सं०स्त्री० (सं० श्रद्धा=इच्छा>प्रा. सद्धा>अ० सद्ध)। अभिलाष,
वासना, इच्छा । 'सकुचि साध जनि मारो।' कृ० ३४ (२) वि०पुं० (सं. श्रद्ध>प्रा० सद्ध)। श्रद्धालु । 'सब सुमति साध सखाउ।' गी० ७.२५५
(३) साधक, सिद्ध करने वाला । 'सगुन साध सुभकाज ।' रा०प्र० १.४.१ ।। साधक : सं०वि०पु० (सं०)। (१) उद्यमशील । (२) साधना करने वाला,
तपस्वी आदि । 'अति पुनीत साधक सिधिदाता।' मा० १.१४३.२ (३) युञ्जान योगी जो योगसिद्धि की प्रक्रिया में चल रहा होता है (इस अर्थ में ही सर्वाधिक प्रयोग हैं) । 'भए अकंटक साधक जोगी।' मा० १.८७.८ 'साधक सिद्ध बिमुक्त उदासी।' मा० ७.१२४.५ (४) कार्य सफल करने वाला । ‘स्वारथ-साधक ।' मा० १.१३६ (५) विवाह के पूर्व वर-कन्या-पक्षों में मध्यस्थ होकर सम्बन्ध
पक्का कराने वाला । 'दुलहिनि उमा, ईसु बरु, साधक ए मुनि।' पा०म० ८० साषको : साधक भी । 'सुनत सिहात सब सिद्ध साधु साधको।' कवि० ७.६८
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