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तुलसी शब्द-कोश
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सहतेउ : क्रियाति०० उए० । चाहे मैं सह लेता। 'बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं।'
मा० ६.६१.१२ सहन : सं०० (अरबी)। आंगन या द्वार का खुला भू-भाग । 'जिय की परी, ___ संभार सहन भंडार को।' कवि० ५.१२ सहनाइन्ह : सहनाई+संब० । शहनाइयों (के साथ)। 'करहिं सुमंगल गान सुघर
सहनाइन्ह ।' पा०म० १३६ सहनाई : सहनाई+ब०। शहनाइयां । 'सरस राग बाहिं सहनाईं।' मा०
१.३०२.६ सहनाई : सं०स्त्री० (फा० शहनाई) सरना-नामक वाद्यविशेष । 'सरना' का सम्बन्ध
(सं.) 'स्वरण' से है अतः स्वर-संघात वाले समुदित वाद्य विशेष को 'शहनाई' कहा जाता है। इसकी निष्पत्ति 'सहनाद' से मानी जा सकती है- यद्यपि
फारसी शब्द का 'शह' संभवतः 'शाह से संबद्ध है । मा० ६.७६.६ सहनि : सं०स्त्री० । सहन करने की क्रिया। ‘सील गहनि, सब की सहनि, कहनि
हीय, मुख राम ।' वैरा० १७ सहब : भक०पु० (सं० सोढव्य>प्रा० सहिअव्व) । सहना (होगा)। 'सो मैं सुनब
सहब सुखु मानी ।' मा० २.१८२.४ सहबासी : वि०० (सं० सहवासिन्)। साथ रहने वाला-वाले, सहचारी।
'सहबासी काचो गिलहिं । दो० ४०४ सहम : सं०स्त्री० (फा०-सहम = 5र) । अनिष्ट की प्राप्ति या आशङका से
उत्पन्न त्रास, जड़ता, कम्प, रोमाञ्च आदि का सम्मिलित अनुभाव । 'समुझि
सहम मोहि अपडर अपनें ।' मा० १.२६.२ सहमत : सहम+वकृ०० । सहम जाते हैं, घबरा उठते । तेरी बालकेलि बीर सुनि
सहमत धीर ।' हनु० २८ सहमि : (१) सप्तम+पू० । सहम कर, जड़वत् होकर । 'कहि न सकइ कछु
सहमि सुखानी।' मा० २.२०.१ (२) भूक०स्त्री० । सहम गई। 'सहमि सूखि
सुनि सीतलि बानी ।' मा० २.५४.२ सहमे : सहम+भूकृ.पु०ब० । सहम गये । 'सुनि सहमे परि पाय कहत भए दंपति ।'
पा०म०१८ सहमे उ : भूकृ०पु०कए० । सहम गया, ठक रहना । 'सुनि सुठि सहमे उ राजकुमारू।'
मा० २.१६१.५ सहर : सं०पु (फा शहर)। नगर । कवि० ७.१७० सहरषा : (सं० सहर्ष) । मा० २.१६१.२ सहरी : सफरी (प्रा०) । कवि० २.८ सहरु : सहर+कए । नगर । विन० २५०.१
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