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तुलसी शब्द-कोश
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सराहियत : सराहिअत । गी० १.८८.१ सराही : (१) सराहि । 'गान करहिं निज सुकृत सराही।' मा० १.३४६.५
(२) भूकृ०स्त्री० । प्रशस्त की, सराहना की (हुई) । 'भगति मोरि मत स्वामि
सराही।' मा० १.२६.३ सराहु, हू : आ०- आज्ञा-मए० (सं० श्लाघस्व>प्रा० सलाह>अ० सलाहु)।
तू सराहना कर । 'पुनि सठ कपि निज प्रभुहि सराहू ।' मा० ६.२६.८ सराहे : भूक००ब । प्रशंसित किये । 'देखि कृपा करि सकल सराहे ।' मा०
७.५०.४ सराहेउ : भूकृ.पु०कए० । प्रशंसित किया। 'कोसिक सुनि नृप बचन सराहेउ
राजहि ।' जा०म० २३ सराहेहु : आ०-भूक००+मब० । तुमने सराहा, सराहे । 'जो अति सुभट ___ सराहेहु रावन ।' मा० ६.२३.६ सराहैं : सराहहिं । प्रशंसा करते हैं । 'तुलसी सराहैं ता को भागु सानुराग सुर ।'
कवि०२.१० सराहै : सराहइ । 'तुलसी सराहे रीति साहेब सुजान की।' कवि० ६.४० सरि : (१) सं०स्त्री० (सं. सरित>प्रा० सरि)। नदी। मा० ७.३५.६
(२) (सं० सदृश्>प्रा० सरि) समानता, सादृश्य, उपमा । सरित, ता : सरि । नदी। मा० १.४१.१; ३१.४ सरितन्ह, न्हि : सरिता+संब० । नदियों (में) । 'सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं।'
मा० ५.२३.६; १.३०४.५ सरिबरि : सं०स्त्री० (सरि=सदृश् + बरि=वरता, श्रेष्ठता)। समान श्रेष्ठता,
बराबरी । 'हमहि तुम्हहि सरिबरि कसि नाथा। कहहु त कहाँ चरन कहँ
माथा।' मा० १.२८२.५ सरिस : (१) वि० (सं० सदृश>प्रा० सरिस)। तुल्य । 'राम सरिस सुत कानन
जोगू ।' मा० २.५०.७ (२) अनुरूप, अनुसार । 'देस काल अवसर सरिस बोले
रामु प्रबीन ।' मा० २.३१४ सरिसा : सरिस । मा० ५.१५.३ सरीकता : सं.स्त्री० (अरबी-शिरकत-शरीक+ता)। भाग, भागिता, अंश
प्राप्ति में सम्मिलित होना । 'रावरी पिनाक में सरीकता कहाँ रही।' कवि०
सरीखे : सारिखे । सदृश । 'बान बलवान जातुधानप सरीखे सूर ।' कवि० १.६ सरीर, रा : सं०पू० (सं० शरीर>प्रा० सरीर) । देह । मा० १.३४; ७४.८ सरीरन्हि : सरीर+संब० । शरीरों (को) । मा० ५.३ छं. ३
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