________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तुलसी शब्द-कोश
1017 सबरिहि : शबरी को। मा० ७.६६.७ सबरी : सं०स्त्री० (सं० शबरी)। (१) शबर जाति की स्त्री। जंगली शिकारी
स्त्री । 'सबरी गान मृगी जनु मोही।' मा० २.१७.१ (२) शबर जाति की एक
तापसी जिसे अरण्यकाण्ड में राम मिले थे । मा० ३.३४.५ सबरूप : वि०० (सं० सर्वरूप)। सभी रूपों में स्वयं ही आकार लेने वाला, सब
का उपादानकारण । 'सब-रूप सदा सब होइ न गो।' मा० ६.१११.१५ सबल : वि० (सं०) । बलयुक्त । मा० ६.७६ छं० । सबहिं, हीं : (१) सभी ने । 'सजे सबहिं हाटक घट नाना ।' मा० १.६६.३
(२) सभी से । 'सबहीं बिधि हीना।' मा० ५.७.७ सबहि, ही : सबको, सबके लिए । मा० १.१० क 'बरषि दिए मनि अंबर सबही।'
मा० ६.११७.६ सवाल : शिशु-सहित, बच्चा लिये हुए । मा० १.३० ३.४ सषिकारा : वि० (सं० सविकार)। विकारयुक्त, सदोष (कामादि मनोविकारों
वाले) । 'अब लगि संभु रहे सबिकारा ।' मा० १.६०.२ सबिता : सं०पू० (सं० सवित)। सूर्य । गी० ७.१३.२ सबिधि : क्रि०वि० (सं० सविधि)। विधिपूर्वक, शास्त्रविहित रीति से । मा०
२.२०४.४ सबिनय : वि० (सं० सविनय) । विनीत, शिष्टाचारयुक्त । मा० २.३१.४ सबिबेका : वि०+कि०वि० (सं० सविवेक)। विवेक सहित, विवेकपूर्वक । उचित
विचार सहित । मा० १.४१.२ ।। सविष : वि० (सं० सविष) । विषयुक्त, विषदिग्ध । मा० ६.६६.६ सबिषाद, दा : वि०+क्रि०वि० (सं० सविषाद)। विषादयुक्त, विषाद के साथ ।
मा० २.१८६.२ 'सुनि सबिषाद सकल पछिताहीं ।' मा० २.११०.६ सबीज : वि० (सं०) । बीज मन्त्र (ओंकार आदि) से युक्त । 'मंत्र सबीज सुनत
जनु जागे।' मा० २.१८४.२ सबील : सं०स्त्री (अरबी-सबील =मार्ग, मार्ग पर शर्बत आदि का मुफ्ती
प्रबन्ध) । उपाय, प्रबन्ध, सहाय-व्यवस्था । 'मैं बिभीषन की कछू न सबील की।'
कवि० ६.५२ सबु : सब+कए । सब-का-सब, एकीभूत समष्टि । 'भिन्न भिन्न मैं दीख सबु ।'
मा० ७.८१ सबुइ : सभी, (एकीभूत) सब कुछ । 'साजिअ सबुइ समाजु ।' मा० २.४ सबेग : वि० (सं० सवेग) । वेगयुक्त, तीब्रगामी । मा० २.२४३.२ सबेरें, रे : (१)क्रि०वि० (सं० सवेल =वेलानुसार, समयानुसार) । समय पर, शीघ्र।
'चितइए सबेरे ।' विन० २७३.३ (२) (सं० श्वोबेल-प्रभातवेला में) प्रातः काल (में)। कहीं ते बाते जे कहि भजे सबेरे ।' कृ०३
For Private and Personal Use Only