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तुलसी शब्द-कोश
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शंभो : शंभु+सम्बोधन (सं०) । हे शंकर । मा० ७.१०८.१६ शक्ति : (दे० सक्ति, सकति) । विन० ५५.२ शक्र : संपु० (सं०)। इन्द्र । विन० २५.२ शची : सं०स्त्री० (सं.)। इन्द्राणी । मा० ३.४.१२ शठ : (दे० सठ)। विन० ४६.१ शत : संख्या (सं.)। सौ, सैकड़ा । विन० ११.२ शतपत्र : सं०० (सं.)। कमल । विन० ६१.२ शत्रु : सं०+वि० (सं.)। (शातनकर्ता)। वैरी । विन० १०.४ शत्रुघ्न : सं०० (सं०) । कनिष्ठ दशरथ पुत्र । विन० ४४.६ शत्रुसूदन : शत्रुघ्न (सं.)। विन० ३८.२ शत्रुहन : शत्रुघ्न । विन० ४०.१ शबरी : (दे० सबरी)। विन० ४३.६ शब्द ब्रह्म : सं०० (सं०) । (१) शब्दरूप ब्रह्म । (२) परा वाणी जो क्रमश:
पश्यन्ती, मध्यमा और बैखरी का रूप लेती है। (३) वेद । (४) ओंकार । (५) स्फोट शब्द जो आन्तरिक होता है और जिससे ही अर्थ-बोध संभव होता
शब्दब्रह्म कपर : (शब्दब्रह्म+एकपर) । वि.पु. (सं.)। एकमात्र शब्दब्रह्म में
तत्पर । ब्रह्मलीन, ओंकारादि में तत्पर । शब्दब्रह्म में निष्णात एवं उसके
एकमात्र ज्ञाता । विन० ५७.४ शब्दादि : (दे० महदादि) राजस और तामस अहंकार से उत्पन्न पांच सूक्ष्मभूत या
तन्मात्र-शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध जिनसे महाभूत परिणत होते हैं-आकाश, वायु, तेज, जल और पृथ्वी। 'प्रकृति, महतत्त्व, शब्दादि, गुण, देवता, व्योम,
मरुदग्नि, अमलांबु, उर्छ ।' विन० ५४.२ शम : (दे० सम) । विन० ४४.८ शमन : वि० (सं०) । शान्त करने वाला । मा० ६ श्लोक २ शयन : सं०पू० (सं.) । शय्या, विश्राम । 'नील पर्यंक कृत शयन ।' विन० १८.४ शर : सं०० (सं०) । बाण । मा० ३.११.४ शरण : सं०० (सं०) । रक्षक, आश्रय । विन० १०.६ शरणागत : (शरण+आगत) शरण आया हुआ; रक्षा हेतु (आश्रय पाने) आया
हुआ । प्रत्पन्न । विन० ५६.५ शरासन : (दे० सरासन) । मा० ३ श्लोक २ । शरीर : सं०० (सं०) । देह, कलेवर । मा० ३.११.३ शर्म : सं०० (सं० शर्मन्) । कल्याण । विन० ६०.६ शर्व : सं०० (सं० -- शहिंसायाम्-संहारकर्ता)। शिव । मा० २ श्लोक १
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