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तुलसी शब्द-कोश
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लोहि : आ०प्रब० । पर्यालोचन करते हैं; विचारते-खोजते हैं। 'बरु अनुदिन
लोहिं ।' पा०म०६ लोटन : सं०० (सं० लुठन, लुण्ठन) । लड़खड़ाहट, स्खन, लेटना, लुढ़कना ।
__ 'काट कुराय लपेटन लोटन ठावहि ठाउँ बझाऊ रे ।' विन० १८६.४ लोथि : सं०स्त्री० । शव । मृतक शरीर । लोथिन : लोथि+संब० । लोथों, शवों। 'लोथिन सों लोहू के प्रबाह चले जहाँ
तहाँ।' कवि० ६.४६ लोन : सं०० (सं० लवण>प्रा० लोण)। (१) नमक । मा० २.३०.८ 'बरी
बरी को लोन ।' दो० ५४६ (२) लावण्य । (३) सुन्दर । 'करि सिंगार अति
लोन तो बिहसति आई हो।' रा०न० १० लोना : लोन । सुन्दर, कमनीय (दे० लावन्य) । 'साँवर कुवँर सखी सुठि लोना ।'
मा० १.२३३.८ लोनाई : लावनिता । लावण्य, सौन्दर्याभा । मा० १.२३७.१ लोनी : वि०स्त्री० । लावण्यवती। 'सोहैं साँवरे पथिक, पाछे ललना लोनी।' गी०
२.२२.१ लोनु : लोन+कए । नमक, क्षार । 'मनहुं जरे पर लोनु लगावति ।' मा०
२.१६१.१ लोने : वि.पु.ब० । लावण्ययुक्त, सुन्दर । 'लालन जोगु लखन लघु लोने ।' मा०
२.२००.१ लोप : (१) सं०० (सं.)। अदर्शन । (२) वि० (सं० लुप्त>प्रा० लुप्प= __ लोप्प) । अदृश्य, लुप्त । 'लोप प्रगट प्रभाय को।' हनु० ३१ लोपति : वकृ०स्त्री० । लुप्त करती। 'लोपति बिलोकत कुलिपि भोंड़े भाल की।'
कवि० ७.१८२ लोपित : भूक०वि० (सं०) । लुप्त किया कि ये । 'कोपित कलि लोपित मंगल मगु ।'
विन० २४१ लोपिहैं : आ०भ०प्रब० । लुप्त (नष्ट) कर देंगे। 'मंडि मेदिनी को मंडलीक लीक
लोपिहैं ।' कवि० ६.१ लोपी : भक०स्त्री० । लुप्त कर दी। 'कलि सकोप लोपी सुचाल। विन० १६५.२ लोपेउ : भूक००कए । लुप्त कर दिया। 'लोपेउ काल बिदित नहिं के हू ।' मा०
२.३१०.४ लोप : आ.प्रए०कवा० (सं० लुप्यते>प्रा० लुप्पइ = लोप्पइ)। लुप्त होता-होती
है । 'तेरें हेरें लोप लिपि बिधिहू गनक की।' कवि० ७.२० लोभ : सं०पू० (सं.)। लालच । अप्राप्त वस्तु की लिप्सा का तीव्र संवेदन
दे० षड्वर्ग । मा० १.३२.६
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