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तुलसो शब्द-कोश
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लेहि : आ०मए । तू ले, ग्रहण कर। 'कहेउ कृपाल लेहि उतराई।' मा०
२.१०२.४ लेहु, ह : आ०मब० (अ०) । लो, प्राप्त करो। मा० २.३३.६; ५०४ लेहौं : लेहउँ । लुगा-गी। 'बलैया लेहौं।' कवि० २.३ ल : (१) लइ । लेकर । 'बालक सब ल जीव पराने ।' मा० १.६५.५ (२) ले ___ जाकर । 'तहां बासु ल दीन्ह भुआला ।' मा० १.२१६.७ (३) ग्रहण करके ।
'पाय ले परहीं।' मा० २.११.८ लैन : लेन । लेने। 'जनु सोभा आये लैन ।' गी० १.३५.२ लंबे : 'लेबा' का रूपान्तर । लेने । 'लैबे को एक न देबे को दोऊ ।' कवि०७ १०६ लै हैं : (१) लेहहिं । लेगे, प्राप्त करेंगे। 'लैहैं लोचन लाहु, सुफल लखि ललित
मनोरथ बेली।' गी० १.८.४ (२) लाइहैं । लगाएंगे। 'सहज कृपालु बिलंब
न ले हैं।' गी० ५.५१.१ लहै : (१) लेहै। लेगा। 'लोचन सुख लहै ।' गी० १.६६.२ (२) लाइहै।
लाएगा, लगाएगा। लहौं : (१) लेहौं। लूगा (लूगी)। 'भाई हौं कहा अवध रहि लहौं।' गी०
२.६५.१ (२) लाइहौं। लगाऊँगा-गी। 'निरखि हरषि उर लहौं ।' गी०
१.६६.४ लोइ, ई : लोक (प्रा० लोय) । लोग, जनता । 'ब्रह्मानंद मगन सब लोई ।' मा०
१.१६४.२ लोक : सं०० (सं०) । (१) दृश्यमान जगत् । (२) तीन लोक = स्वर्ग, पृथ्वी
और पाताल । (३) चौदह लोक-दे० भुवन । (४) यह जीवन । 'लोक लाहु परलोक निबाहू ।' मा० १.२०.२ (५) व्यावहारिक जगत् । 'लोक बेद बर बिरिद बिराजे ।' मा० १.२५.२ (६) दो लोक=ऐहिक तथा आमुष्मिक जीवन । 'उभय लोक निज हाथ नसावहिं ।' मा० ७.१००.७ (७) जनता, लोग। जैसे, लोकमत। 'भे सब लोक सोक बस बौरा ।' मा० २.२७१.१ (८) समाज । 'लोक लखि बोलिए।' कवि० १.१५ (8) लौकिक मर्यादा। 'लोक राखे निपट निकाई है।' गी० ५.२६.३ (१०) (सं० श्लोक) =सिलोक
+लोक (मान्यता) । यश । 'सुत बित लोक ईषना तीनी ।' मा० ७.७१.६ 'लोकउ : लोक भी, व्यावहिक विश्व भी। पाइहि लोकउ बेदु बड़ाई।' मा०
२.२०७.२ लोकनाथ : लोकपाल (सं.)। कवि० ७.२५ लोकनि : लोक+संब० । लोकों (को) । 'लोकनि सिधारे लोकपाल सबै ।' कवि०
६.५८ लोकप, पति : लोकपाल (सं०) । मा० २.२.३, मा० १.३३३
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