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तुलसी शब्द-कोश
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लुकात : वकृ०पु । छिपता-छिपते । 'लवा ज्यों लुकात तुलसी झपेटें बाज के ।'
कवि० ६६ लुकाने : भूकृ.पुब ० । छिप रहे । 'कपटी भूप उलूक लुकाने ।' मा० १.२५५.२ लुके : लुकाने । 'लुके उलूक नरेस ।' रा०प्र० १.५.५ लुगाई : लोगाई । मा० १.२०४.८ लुटाई : भूक०स्त्री० । लुटा दी, बिखेर दी। 'निज संपदा लुटाई ।' गी० १.१.५ लटि : लुटि । 'नयन लाभ लटि पाई।' गी० १.५५.८ लुटैया : वि०ब० । लूटने वाले। ‘ह हैं सकल सुकृत सुख भाजन लोचन-लाहु ___ लुटवा।' गी० १.६.५ लुठत : वकृ.पु० (सं० लुठत्) । लोटता हुआ, बिखरता हुआ। 'जनु महि लुठत
सनेह समेटा।' मा० २.२४३.६ लुनाई : लोनाई । सुषमा। गी० १.५२.४ लुनिप्र : आ०कवा०प्रए० (सं० लूयते>प्रा. लुणीअइ) । काटा जाता है। 'बवा ___सो लुनिअ ।' मा० २.१६.५ लुनिअत : वकृ००कवा० (सं० लूयमान>प्रा० लुणीअंत)। काटा जा रहा है। __ 'बयो लुनिअत सब याही दाढ़ीजार को।' कवि० ५.१२ लुनिए : लुनिअ । काटा जाय । 'बयो सो सब लुनिए।' कु० ३७ लुनिहै : आ०म०प्रए० (सं० लविष्यति>प्रा० लुणिहिइ) । काटेगा। 'लुनिहै पै सोई
सोई जोई जेहिं बई है।' गी० १.८६.६ लुप्त : भूकृ०वि० (सं०) । अदृश्य, नष्ट । 'लुप्त भए सदग्रंथ ।' मा० ७.६७ लुबुध : लुब्ध । 'लुबध मधुप इव तजइ न पासू ।' मा० १.१६.४ लुब्ध : भूकृ०वि० (सं.)। लोभग्रस्त, लिप्सा-लीन । विन० २०७.३ लुभाइ, ई : पूकृ० । लुब्ध होकर, लोभलीन हो। 'जहँ बसंत रितु रही लुभाई ।'
मा० १.२२७.३ रही है लुभाइ लुभाई ।' गी० १.५५.२ लुमाने : भूक पुब ०। लुब्ध हुए। 'मुक्ति निरादर भगति लुभाने ।' मा०
७.११६.७ लुमाहिं : आ०प्रब० । लुब्ध होते हैं । 'बिरत जे परम सुगतिहुं लुभाहिं न ।' विन०
२०७.३ लूक : सं०० (सं० उल्का-स्त्री०) । टूटा हुआ तारा । 'दिनहीं लूक परन बिधि
लागे।' मा० ६.३२.७ लूगा : सं० । लुगड़ा, चिथड़ा, जीर्ण वस्त्र-खण्ड । विन० ७६.१ लूटक : वि.पु. (सं० लुण्टाक)। लूटने वाला, अपहरण करने वाला । 'मुनिपट
लूटक पटनि के ।' कवि० २.१६ (पट्ट रेशम की शोभा हरने वाले मुनिपट)।
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