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तुलसी शब्द-कोश
लिख्यो : भूकृ००कए । लिखा । कवि० ७.५६ लिपि : सं० स्त्री० (सं०) । लेख, अङक । 'तेरे हेरें लोपै लिपि बिधिहू गनक की।'
कवि०७.२० लिय : भृकृ० । लिया, ग्रहण किया, चना । 'रामचरित सत कोटि मह लिय महेस
जिय जानि ।' मा० १.२५ लियउ : लिय+कए । 'पुनि प्रभु बोलि लियउ हनुमाना। मा० ६.१०७.१ लिया : लिय । ग्रहण किया। 'तेरो नाम लिया रे।' विन० ३३.४ लिये : लिए । कृ० १७ (२) लेने । 'नाम लिये तें।' कवि० ७.१२६ (३) ले लेने
पर । 'मनि लिये फनि जिय ब्याकुल बिहाल रे ।' विन० ६७.३ (४) परसर्ग । के हेतु, तदर्थ । 'तेरे लिये जनम अनेक मैं फिरत न पायो पार ।' विन
१८५.३ लियो : लियउ। (१) ग्रहण किया। ‘लियो काढि बामदेव नाम घत है।' विन०
२५४.२ (२) अङ्गीकृत किया। 'कृपानिधान मोहि कर गहि लियो।' मा०
७.५ छं०२ लिलार : ललाट (प्रा० निडाल)। (१) मस्तक । मा० ५.३८.६ (२) भाग्य । 'जो
बिधि लिखा लिलार ।' मा० १.६८ लिवाइ : लवाइ । लिवाकर, साथ लेकर । 'रामहि चले लिवाइ ।' जा०म० ३६ लिहे : लिए । लिये हुए। रा०न०६ ली : लई । पाई, ले ली । “मैं सबै के जी की थाह ली।' कवि० ७.२३ लोक, का : संस्त्री० (सं० लेखा-रेखा)। (१) लकीर । 'मानों प्रतच्छ परब्बत
की नभ लीक लसी कपि यो धुकि धायो।' कवि० ६.५४ (२) स्थान, संख्या । 'भटमहुं प्रथम लीक जग जासू ।' मा० १.१८०.७ (३) मर्यादा, सीमा। 'अजहुं
गाव श्रुति जिन्ह के लीका ।' मा० १.१४२.२ (रेखा अर्थ सर्वत्र अनुस्यूत है।) लीख : लीक । 'बेद बिदित यह लीख ।' विन० १८.४ लीचर : सं०० । अशक्ति, शिथिलता (?)। 'बाहुक सुबाहु नीच लीचर मरीच।'
हनु० ३६ अवधी में 'लीचर' नवजात पशु-शिशु को कहते हैं जो निश्चल' से ___ लगता है। लीजत : वकृ०पुंकवा० । लिया जाता है, लिये जाते। 'लीजत क्यों न लपेटि
लवा से ।' हनु० १८ लीजिए : आ०-कवा०-प्रए । लिया जाय । मा० ४.१० छं० लीज : लीजिए। 'दै पठयो पहिलो बिढ़तो ब्रज सादर सिर धरि लीजै ।' कृ० ४६ लीन : भूक०० (सं.)। (१) मग्न, डूबा हआ। (२) तदाकारता प्राप्त । 'तातें
मुनि हरि-लीन न भयऊ ।' मा० ३.६.२ (३) ध्यानावस्थ, समाहित, एकान।
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