________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तुलसी शब्द-कोश
लवलेस, सा : (सं० लव-लेश खण्ड का खण्ड ) । क्षुद्र कण, अल्पतम अंश । मा० ५.२१ नहि तह मोह निसा लवलेसा ।' मा० १.११६.५
947
लवलेसु, सू : लवलेस + कए० । मा० २.३०३.५
लवा: सं०पु० (सं० लवक > प्रा० लवअ ) लावा । बटेर पक्षी । 'बाज झपट जन लवालुकाने ।' मा० १.२६८.३
वाई : (१) पूकृ० । लिवा कर साथ लेकर । 'सादर चलीं लवाइ ।' मा० १.२४६ (२) लवाई | शीघ्र ब्याई हुई । 'हुंकरि हुँकार सुलवाइ धेनु जिमि धावहिं ।" पा०मं० १०३
वाई : (१) लवाइ । साथ लेकर । 'जा दिन तें मुनि गए लवाई।' मा० १.२६१.७ (२) भूकृ० स्त्री० । साथ ले जाई गयी । ( ३ ) शीघ्र ब्याई हुई | 'बाल बच्छ जनु धेनु लवाई ।' मा० १.३३७.८ (संस्कृत में 'लाविका' भैंस के अर्थ में है - उसी का रूपान्तर तथा अर्थान्तर जान पड़ता है) ।
ल : आ०प्र० (सं० लू छेदने) फसल काटता है, काट सकता है ( फल पाता है) । 'बवं सो लवं निदान ।' वैरा० ५
/ लस, लसइ, ई : आ०प्र० (सं० लसति - लस कान्ती > प्रा० लसइ) । शोभित होता है, दीप्ति बिखेरता ती है । 'लस मसि बिंदु बदन बिधु नीको।' गी० १. २४.६ 'जनु मधु मदन मध्य रति लसई ।' मा० २.१२३.३
लसत: वकृ०पु० । दीप्त होता होते । 'लसत स्वेद कन जाल ।' मा० २.११५ लसति : वकृ० स्त्री० । प्रकट होती । 'मति लसति बिषयँ लपटानि ।' दो० २५३ लसद् : लसत (सं० ) । सुशोभित होता हुआ । मा० ७.१०८.३
सम: वि० अल्प, अकिंचन । 'लसम के खसम तुहीं पे दसरत्थ के ।' कवि० ७.२४ सहि: आ०प्र० (अ० ) । दमकते हैं । 'रद लसहि, दमक जनु दामिनि ।'
1
जा० मं० ७२
लसी : भूकृ० स्त्री० । शोभित हुई, चमकी । 'मानों प्रतच्छ परब्बत की नभ लीक लसी ।' कवि० ६.५४
लसे : भूकृ०पु०ब० (सं० लसित > प्रा० लसिय) । शोभित हुए । 'पिसाच पसुपति संग लसे ।' पा०मं० छं० १२
लसें : लसहि । 'द्वे द्वे दंतुरियां लसें ।' गी० १.३३.४
लर्स : लसइ । कवि० ७.१३८
लस्यो : भूकृ०पु०कए० । दीप्त हो उठा, चमक चला । 'सरीरु लस्यो तजि नीरु ज्यों कोई ।' कवि० २.२
For Private and Personal Use Only
'लह, लहइ, ई : आ०प्र० (सं० लभते > प्रा० लहइ) । (१) पाता है, पा सकता है । तासु बिमुख किमि लह बिश्रामा ।' मा० ६.३५.६ सुभ गति लहइ ।' मा० ३.५ ‘अकलं'कता कि कामी लहई ।' मा० १.२६७.३ (२) संगत होता है,