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तुलसी शब्द-कोश
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लगाइन: आ०कवा०प्रए । लगाया (आरोपित किया) जाय। 'तो कत दोसू ___ लगाइअ काहू ।' मा० १.६७.७ लगाई : भूक०स्त्री०ब० । रोपी । 'सुमन बाटिका सबहिं लगाई। मा० ७.२८.१ लगाई : (१) लगाइ। 'कोसल्यां लिए हृदयें लगाई।' मा० २.१६७.१
(२) भूकृ०स्त्री० । रोपी। 'तुलसिका' 'मुनिन्ह लगाई ।' मा० ७.२६.६ । लगाऊ : वि०पू० । लगाने वाला । 'जस जस चलिअ दूरि तस तस निज बास, न
भेंट लगाऊ रे ।' बिन० १८९.४ लगाए : भूक०० ब० । (१) संसक्त किये । 'साधु जानि हसि हृदय लगाए ।' कृ०
६ (२) रोपे । 'तुलसी तरुबर बिबिध सुहाए। कहुं कहुं सिय कहुं लखन
लगाए।' मा० २.२३७.७ लगामु : (फा० लगाम) क ए० । घोड़े की बाग । मा० १.३१६ छं० लगाय : लगाइ । 'ईंधन अनल लगाय कलप सत औदत नास न पावै ।' विन..
११५.२ लगावत : वकृ०० । लगाता-ते, लिपटाता-ते । 'हृदयं लगावत बारहिं बारा।'
मा० २.४४.५ लगावति : वकृ०स्त्री० । लगाती। (१) संसक्त करती। 'मनहुं जरे पर लोन
लगावति ।' मा० २.१६१.१ (२) आरोपित करती। 'बिनु कारन हठि दोष
लगावति ।' कृ० ५ लगावहिं : आ०प्रब० (सं० लगयन्ति>प्रा. लग्गावंति>अ. लग्गावहिं) । लगाते
ती हैं । (१) आरोपित करते हैं । 'ते नृप रानि हि दोसु लगावहिं ।' मा० २.१२२.३ (२) संसक्त करते हैं। 'नगर गाउँ पुर आगि लगावहिं ।' मा०
१.१८३.६ लगावा : भूक०० । लगाया। (१) लिपटाया । 'कंठ लगावा।' मा० ४.२०.६
(२) एकाग्र किया । इहाँ आइ बकध्यान लगावा ।' मा० ६.८५.७ लगाव : आ.प्रए० (सं० लगयति>प्रा० लग्गावइ)। लगाता है, आरोपित करता
है । 'बेनु करिल श्रीखंड बसंतहि दूषन मषा लगावै ।' विन० ११४४ लगि : पूकृ०। (१) लगकर, संलग्न होकर । (२) लिए, तदर्थ । 'पर अकाज लगि
तन परिहरहीं।' मा०१.४.७ (३) तक, पर्यन्त । 'तब लगि बैठ अहउँ बट छाहीं।' मा० १.५२.२ (४) संस्त्री० । लग्गी, लम्बा बांस आदि । 'नामलगि लाइ, लासा ललित बचन कहि, ब्याध ज्यों बिषय बिगनि बझावौं ।'
विन० २०८.२ लगिहहु : आ०भ० मब० । लगोगे-गी, एकनिष्ठ होगे-होगी । 'जौं नहिं लगिहहु कहें
हमारे ।' मा० २.५०.५
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