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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 908 तुलसी शब्द-कोश 'चंदकिरन रस रसिक चकोरी।' मा० २.५६.८ (४) निचोड़, सार । 'तुलसी अधिक कहे न रहै रस गूलरि को सो फल फोरे।' कृ० ४४ (५) मकरन्द, पुष्पसार । 'गुजत मंजु मत्त रस भृगा।' मा० १.२१२.७ (६) द्रव, स्निग्ध पदार्थ, जल । 'मनहुं प्रेम रस सानि ।' मा० १.११६ (७) स्नेह । 'सानी सरल रस मातु बानी ।' मा० २.१७६ छं० (८) काव्यरस :-शृङ्गार, वीर, करुण, अद्भुत, हास्य, भयानक, बीभत्स, रौद्र और शान्त । नव रस जप तप जोग बिरागा।' मा० १.३७.१० (६) व्यञ्जन रस :-मधुर, अम्ल, लवण, कटु, कषाय और तिक्त । 'छ रस रुचिर बिजन बहु भाँती।' मा० १.३२६.५ (१०) खनिज औषध (अभ्रक, स्वर्ण, मण्डूर आदि) । 'रावन सो रसराज, सुभट रस सहित, लंक खल खलतो।' गी० ५.१३.२ (११) काव्य का भक्तिरस (जिसमें उक्त नवरसों का समावेश मान्य किया गया है)। हरि पद रति रस बेद बखाना ।' मा० १.३७.१४ (१२) (छह व्यञ्जन रसों के आधार पर) छह संख्या । दो० ४५८ (१३) स्थिति । 'सदा एकहि रस दुसर दाह दारुन दहौं ।' विन ० २२५.३ (१४) थोड़ा, धीरे (सं० ह्रस्व>प्रालि रस्स) । 'रस रस सूख सरित सर पानी।' मा० ४.१६.५ रसखानि : अधिक सरस, रसपूर्ण । रान०८ रसग्य : वि० (सं० रसज्ञ) । स्वाद जानने वाला-वाली । विन० १६७.३ रसन : रसना । जीभ । 'कहै कौन रसन मौन जाने कोइ कोई ।' कृ० १ रसना : जीभ से । 'रसना निसिबासर राम रटो।' कवि० ७.८६ रसना : सं०स्त्री० (सं०) । (१) जीभ । 'गिरहिं न तव रसना अभिमानी ।' मा० ६.३३.८ (२) स्वाद-ग्राहक इन्द्रिय। 'रसना बिनु रस लेत।' वैरा० ३ (३) कटिभूषण (सं० रशना) । करधनी । 'रसना रचित रतन चामीकर।' गी० ७.१७.५ रसभंग : काव्य या नाट्य में रसविरोधी तत्त्व (दोष) आ जाने से रसिक के रसा स्वाद में बाधा आती है उसे मूलत: ‘रसभङ्ग' कहा जाता है। लक्षणा से विघ्न या त्रुटि आ जाने पर जो फल प्राप्ति या आनन्द में व्याघात होता है, उसे भी 'रसभङ्ग' कहा जाता है। (१) स्नेह में विच्छेद । 'लग्यो मन बहु भांति तुलसी होइ क्यों रस-भंग।' कृ० ५४ (२) अपशकुन, अनर्थ, बड़ा ध्याघात । 'रावन सभा ससंक सब देखि महा रसभंग।' मा० ६.१३ ख रसभंगू : रसभंग+कए । आनन्द एवं पूर्णता में महाव्याघात । 'राम राज रसभंगू।' मा० २.२२२.७ रसभेद : (दे० रस) साहित्य शास्त्र में रसों के विविध प्रकार तथा मतान्तर से भक्ति आदि रसों की विविधता । 'भावभेद रसभेद अपारा ।' मा० १.६.१० For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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