________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
886
तुलसी शब्द-कोश्य
मृगनायक : वन जीवों का राजा=सिंह । मा० ६.६६.२ मगनि : मगन्ह । मृगों (को)। 'तुलसी मुनि खग मगनि सराहत ।' गी० ३.१.३ मृगनै नि, नी : मृगनयनी । मा० ३.३०.६ मृगन्ह : मृग+संब० । मृगों (वन जन्तुओं) । 'बिबिध मृगन्ह कर आमिष राधा। ___ मा० १.१७३.३ मृगपति : मगनायक । मा० ६.११ ख मृगबारि : मृगजल । विन० ७३.२ मृगभ्रमबारि : मृगबारि । विन० १३६.२ मृगमद : सं०० (सं.)। कस्तूरी । मा० १.१६४.८ मृगमाला : मृग-श्रेणी, हरिणसमूह । मा० १.३०३.६ मगया : संस्त्री० (सं.)। आखेट, शिकार । मा० ३.१६.६ मृगराउ, ऊ : मृगराजु (अ०)। सिंह । 'कलुष पुज कुंजर मृगराऊ ।' मा०
२.१०६.१ मृगराज : मृगनायक । मा० १.१२५ मृगराजु, जू : मृगराज+कए० । अकेला सिंह। जिमि करि निकर दलइ मृगराजू ।'
मा० २.२३०.६ मृगरूपा : (सं० मृगरूप) मगरूपधारी (चन्द्रमा के भीतर बसने वाले मृग के
समान)। 'कीरति बिधु तुम्ह कीन्ह अनूपा । जहँ बस राम-प्रेम मृगरूपा ।'
मा० २.२१०.१ मृगलोचनि, नी : मृगनयनी । मा० २.६३.४ मृगवात : मृगसमूह । विन० ५६.५ मगसावक नयनी : मृगशावक (हरिणशिश) के समान भोले सुन्दर नेत्रों वाली। ___मा० २.८.७ मृगा : मृग । कवि० ३.१ मृगांक : (१) सं०० (सं०)। एक प्रकार का रसायन = चन्द्रोदय रस जो क्षय रोग की
उत्तम औषध है । उसे रत्नों और सुवर्ण की भस्म से बनाया जाता है । कवि०
५.२५ (२) चन्द्रमा । मुगिन्ह : मृगी+संब० । मृगियों (को)। 'मृगिन्ह चितव जनु बाघिनि भूखी।"
मा० २.५१.१ मृगी : मृगी+ब० । हरिणियाँ । 'मृगी कहहिं तुम्ह कहुं भय नाहीं।' मा० ३.३७.५ मृगी : सं०स्त्री० (सं०) । हरिणी । मा० ३.२६.२४ मृगु : मृग+कए० । कोई हरिण । 'मनहुं भाग मृगे भाग बस ।' मा० २.७५ मतक : सं.पु. (सं.)। मरा हुआ, शव । मा० १.३०८.४ मृतककर्म : प्रेतकर्म ; दाह-संस्कार आदि औध्र्वदेहिक कृत्य । मा० ४.११.८.
For Private and Personal Use Only